जुनूने इश्क़ में….
जुनूने इश्क़ में गुफ्तगू सख्त मना है
हर्फ़े सुकूत को बस पढ़ना समझना है
रूपोश हो भी तो हम दोनों कहाँ जाये
फलक में सितारें दीवारों में आईना है
अपने साये से भी तुम सहम जाते हो
कह दूँ निगाहों से ,जो तुमसे कहना है
आज तक तेरी तस्वीर ही देख पाया हूँ
वस्ले जानां तो केवल एक कल्पना है
खुदा की तरह तुम अप्राप्य अदृश्य हो
तन्हां आये है आफाक में तन्हा रहना है
किशोर कुमार खोरेन्द्र
(जुनूने इश्क =प्रेम उन्माद ,गुफ्तगू =बातचीत
हर्फ़े सुकूत =ख़ामोशी के अक्षर
रूपोश =मुंह छुपाना ,भाग जाना ,फलक =आकाश
वस्ले जानां =प्रिय से मिलन ,तन्हा =अकेले ,
आफाक =संसार ),
बढ़िया ग़ज़ल !
thank u