गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : तेरी रहमते मौला

 

क्या कशिश है तेरी निगाहों में,
मिस्ल-ए–हस्ती है तेरी राहों में।

आरज़ू और भी हुई पुख्ता,
जब से पहुंचे हैं कत्लगाहों में।

दर्द से आह भी जो की मैंने,
वो भी शामिल है अब गुनाहों में।

दीद होगी यकीन है मुझको,
ख़ाक बनकर बिछी हूं राहों में।

आखरी हिचकी जब भी आए तो,
काश आये उसी की बाहों में ।

‘प्रेम’ पर तेरी रहमते मौला,
शुक्र है तेरी बारगाहोंमें।

1 कशिश= आकर्षण, 2मिस्ल= समान, 3 आरज़ू= इच्छा, 4पुख्ता= मज़बूत, 5कत्लगाहों=कत्ल करने की जगह, 6 दीद= दर्शन, 7बारगाह=दरबार

प्रेम लता शर्मा

नाम :- प्रेम लता शर्मा पिता:–स्व. डॉ. दौलत राम "साबिर" पानीपती माता :- वीरां वाली शर्मा जन्म :- 28 दिसम्बर 1947 जन्म स्थान :- लुधियाना (पंजाब) शिक्षा :-एम ए संगीत, फिज़िकल एजुकेशन परिचय :-प्रेमलता जी का जन्म दिसम्बर 1947 बंटवारे के बाद लुधियाना के ब्राह्मण परिवार मैं हुआ। 1970 से 1986 तक शिक्षा विभाग में विभिन्न स्कूलों और कॉलेज में पढ़ाया उसके बाद यु.एस.ए. चले गएँ वहां आई.बी.एम. से रिटायर्ड हैं । छोटी सी उम्र में माता-पिता के साये से वंचित रही हैं । पिता जी अजीम शायर व भाई सुदर्शन पानीपती हिंदी लेखक थें । अपने पिता जी की गजलों को संग्रह कर उनकी रचनाओं की एक पुस्तक ‘हसरतों का गुबार’ प्रकाशित कर चुकी हैं ।भारत से दूर रहने पर भी साहित्य के प्रति लगन रोम रोम में बसा है।

One thought on “ग़ज़ल : तेरी रहमते मौला

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल !

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