रेत के पन्नों पर
रेत के पन्नों पर
एक गीत लिखने लगी है चांदनी
स्निग्ध किरणों का स्पर्श पा
हर नदी लगने लगी है ..मंदाकनी
बरगद की छाया तक ,चलकर आ गयी
देखने जगमगाते सितारों की ,.. छावनी
सफ़ेद लकीर सी उभर आयी है पगडंडियाँ
नजर नहीं आ रहा पर कोई भी आदमी
यह मौन का कौनसा मधुर राग है
जिसे छेड़ गयी हैं आज रागनी
घाटियों में
उतर आये हैं नर्म रुई से बादल
छूना मत उन्हें
कांच सा तुम कही दरक न जाओ
सम्मोहित कर लेती हैं उनकी सादगी
रेत के पन्नों पर
एक गीत लिखने लगी है चांदनी
किशोर कुमार खोरेन्द्र
सुन्दर कविता !
shukriya vijay ji