भाषा-साहित्य

यक्षगान : एक सांस्कृतिक कला

ज्ञानपीठ पुरस्कार से अलंकृत कन्नड के श्रेष्ठ साहित्यकार श्री शिवराम कारन्त जी अपने ‘यक्षगान बयलाट’ शोधप्रबन्ध में कहते हैं- “ यक्षगान का सर्वप्रथम उल्लेख सार्णदेव के ‘संगीत रत्नाकर’ में लगभग १२१० ई. में ‘जक्क’ नाम से जाना जाता था, आगे ‘यक्कलगान’ के नाम से बदल गया। गंदर्वगान तो अब नाश हो गया है, पध्दति के अनुसार गान और स्वतंत्र लोकसंगीत शैली से नृत्य का सृजन हुआ है।” १५००ई तक व्यवस्थित यक्षगान का रुप सामने उभर आ गया था इसे अनेक विद्वान मानते भी हैं। मूलत:  यक्षगान दक्षिण भारत में ही अत्यंत प्रसिध्द एवं प्रचलित है।  यक्षगान कला संस्कृति को कन्नड, तामिल और तेलगु में पाया जाता है।Dr. V. Raghavan, in his essaya on ‘Yakshagana’ in Triveni for Sep.-Oct. 1934(Vol, VII, No.2) says, “The Yakshagana belongs to South Canara in the Kannada area. For it is the Karnataka country that has named our South India music and dance as ‘Karnatic’. In South Canara, the Yakshagana is one of the two most wide-spread popular dramatic entertainments… the vernacular name of Yakshagana is ‘Bayal Attam’ i.e., open-air play, a name which corresponds to the Tamil, ‘Terukoothu’ and the Telugu ‘Veethi Nataka’ both of which mean ‘street-play.’”

यक्षगान के प्रमुख अंश:-              यक्षगान नृत्य, गाना, वार्तालाप और वेषभूषाओं से सजनेवाली कर्नाटक की एक सांप्रदायिक शास्त्रीय कला है। कर्नाटक के उत्तर कन्नड, दक्षिण कन्नड, उडुपी, शिवमोग्ग, चिक्कमगलूर आदि जिलों में यक्षगान घर-घर की नृत्यकला है। साथ में कर्नाटक के इर्दगिर्द राज्य यानि केरल, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश में भी यह  यक्षगान प्रचलित में है।

१. संदर्भ:- यक्षगान में किसी एक कथावस्तु को लेकर उसे लोगों को गाना, अभिनय, नृत्य के साथ दर्शाया जाता है। इसी को यक्षगान का कथावस्तु कहा जाता है। उदाहरण के लिए महाभारत के भीम और दुर्योधन के बीच चलनेवाले गधायुध्द के कथावस्तु को चुन लिया तो उसे गधायुध्द संदर्भ कहा जाता है। इन संदर्भों में पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक संदर्भों को चुन सकते हैं।

. पात्र:- यक्षगान के संदर्भ के कथावस्तु को अभिनय करनेवालों को ही पात्र कहा जाता है। स्त्री पात्र, खलनायक पात्र, हास्य-व्यंग्य पात्र, नायक ऐसे ही संदर्भ के अनुसार पात्रों का सृजन होता है। नृत्य, अभिनय, वार्तालाप के द्वारा कथावस्तु को प्रेक्षक तक पहुँचाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पात्रों पर होता है।

. वेषभूषण:- यक्षगान में वेषभूषाओं का महत्वपूर्ण अंग है। पात्रों के अनुसार वेषभूषायें होती हैं। खलनायक और प्रमुख नायक की जो वेषभूषायें होती हैं वो सामान्य पात्र के लिए नहीं होती। विभिन्न पात्रों के लिए विभिन्न सरताज होते हैं। वेषभूषायें विभिन्न अलंकारों से सजाई होती हैं।

. भागवत:- यक्षगान में अत्यंत प्रमुख जो होता है वह है भागवत, संदर्भ के अनुसार पात्र अभिनय करते हैं तो ये भागवत कथावस्तु को काव्यगायन के रुप में प्रस्तुत करते हैं। इस यक्षगान में कथावस्तु को काव्यरुप में प्रस्तुत करनेवलों को भागवत कहा जाता है। भागवत के काव्यगायन के अनुसार पात्र अभिनय करते हैं। नृत्य के साथ भावाभिनय  की भी प्रचूरता होती है।

. वार्तालाप:- भागवत के काव्यगायन के पश्चात पात्र उसे वार्तालाप के द्वारा विवरण देते हैं। काव्यगायन में घटना को गाया जाता है उसे लोगों को सरल एवं बोलचाल की भाषा में प्रस्तुत किया जाता है।

. संगीत:- यक्षगान में मृदंग, ढोल, बाजे जैसे विभिन्न संगीत के उपकरणों से कथावस्तु को संगीतमय बनाया जता है। यक्षगान को प्रभावशाली बनाने के लिए संदर्भ के अनुचित संगीत के उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है।

*यक्षगान के प्रकार:-


यक्षगान के प्रमुख दिग्गज
:-              यक्षगान में अनेक प्रकार हैं उसमें यक्षगान बयलाट बहुत ही प्रसिध्द है। बयलाट यानि वेषभूषा के साथ रंगमंच पर खेलनेवाला खेल होता है। पहले तो रात-रात भर गांव के किसी बडे मैदान में इसे खेलते थे इसलिए इसका नाम बयलाट पडा था। कन्नड भाषा में बयलाट यानि बाहरी रंगमंच या मैदान। यक्षगान में मूडलपाय और पडुवलपाय जैसे दो प्रमुख प्रकार हैं।उत्तर कर्नाटक में श्रीकृष्ण पारिजात इसी मूडलपाय यक्षगान  का ही एक अंग है। पडुवलपाय में तीन विभाग हैं- तेंकुतिट्टु, बडगुतिट्टु और उत्तरतिट्टु। उत्तर कन्नड तथा शिवमोग्ग जिलों में उत्तरतिट्टु शैली का बयलाट देखने को मिलता है, उडुपी में बडगुतिट्टु, दक्षिण कन्नड तथा कासरगोडु (केरल) जिलों में तेंकुतिट्टु शैली का यक्षगान देख सकते हैं। वेषभूषण, नृत्य शैली, भागवत और संगीत की दृष्टि से मात्र यह प्रकार बनाए गये हैं पर असल में यक्षगान का मूल तत्व, आशय, मूल शैली एक ही है।

भागवत राघवेंद्र मैय्य, नारयणप्प, दि. उपुरु नारणप्प कडतोक, मंजुनाथ भागवत, कोलगी केशव हेगडे, दि. गुंडमी, सुब्रमण्य, दारेश्वर, के.पी.हेगडे, उमेश भट्ट बाडा, नारायण शबराय, बलिप नारायण भागवत, होस्तोट मंजुनाथ भागवत, दामोदर मुंडेच्च, पूल्य लक्ष्मी नारायण शेट्टी, लीलावती बैपाडित्थाय, पद्यान गणपति भट, दिनेश अम्मण्णाय, पुत्थिगे रगुराव होल्ल, मरवंते नरसिंहदास भागवत, मरवंते श्रीनिवासदास भागवत, मरवंते कृष्णदास, मरवंते देवराजदास, हेरंजालू गोपाल गाणिग, बलिप प्रसाद भागवत, नलिप गोपालकृष्ण भागवत, कुबनूरु श्रीधरराव, अंडाल देवीप्रसाद शेट्टी, बोट्टिकेरे पुरुषोत्तम पुंज, कुरिय विठल शास्त्री, विद्वान गणपति भट, शंकर भट भ्रमूरु,आदि। इनके अलावा भी यक्षगान में पात्र, संगीत, अभिनय के अनुरुप विभिन्न यक्षगान कलाकार है। ऐसे अनेक विद्वान कलाकर कर्नाटक, केरल, तामिलनाडु, आंध्रप्रदेश में प्रसिध्द हैं।

डॉ. सुनील कुमार परीट

नाम :- डॉ. सुनील कुमार परीट विद्यासागर जन्मकाल :- ०१-०१-१९७९ जन्मस्थान :- कर्नाटक के बेलगाम जिले के चन्दूर गाँव में। माता :- श्रीमती शकुंतला पिता :- स्व. सोल्जर लक्ष्मण परीट मातृभाषा :- कन्नड शिक्षा :- एम.ए., एम.फिल., बी.एड., पी.एच.डी. हिन्दी में। सेवा :- हिन्दी अध्यापक के रुप में कार्यरत। अनुभव :- दस साल से वरिष्ठ हिन्दी अध्यपक के रुप में अध्यापन का अनुभव लेखन विधा :- कविता, लेख, गजल, लघुकथा, गीत और समीक्षा अनुवाद :- हिन्दी-कन्नड-मराठी में परस्पर अनुवाद अनुवाद कार्य :- डाँ.ए, कीर्तिवर्धन, डाँ. हरिसिह पाल, डाँ. सुषमा सिंह, डाँ. उपाध्याय डाँ. भरत प्रसाद, की कविताओं को कन्नड में अनुवाद। अनुवाद :- १. परिचय पत्र (डा. कीर्तिवर्धन) की कविता संग्रह का कन्नड में अनुवाद। शोध कार्य :- १.अमरकान्त जी के उपन्यासों का मूल्यांकन (M.Phil.) २. अन्तिम दशक की हिन्दी कविता में नैतिक मूल्य (Ph.D.) इंटरनेट पर :- www.swargvibha.in पत्रिका प्रतिनिधि :-१. वाइस आफ हेल्थ, नई दिल्ली २. शिक्षा व धर्म-संस्कृति, नरवाना, हरियाणा ३. यूनाइटेड महाराष्ट्र, मुंबई ४. हलंन्त, देहरागून, उ.प्र. ५. हरित वसुंधरा, पटना, म.प्र.

One thought on “यक्षगान : एक सांस्कृतिक कला

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी जानकारी है. संगीत में रूचि रखने वालों के लिए विशेष उपयोगी है. धन्यवाद.

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