करो न आहट
करो न आहट धडकनों
टुकड़े दिल के जुड़ रहे हैं
करो न आहट आहों
बहते आंसू सूख रहे हैं
करो न आरज़ू कोई
बिखरा अक्स बन रहा है
करो न फरियाद कोई
होगा न कोई मोल तेरा
साँसे छुटने से पहले
है अदा यही ज़िन्दगी की
खोने के बाद ही चीज़
बेशकीमती हो जाती है
ऐ दिल संभल जा
नए दर्द ने दी है दस्तक फिर है
ऐ पलकों संभल जाओ
थामना होगा आंसूओं को फिर ||
— मीनाक्षी सुकुमारन
बहुत अच्छी कविता .
बहुत ख़ूब