कविता

कहीं प्यार छुपा हो मेरे लिए,

 

यूं नफरत से न देखो मुझको,
कुछ अपने दिल में भी झांकों
कहीं प्यार छुपा हो मेरे लिए,
कोई इकरार छिपा हो मेरे लिए,

रूठो भी अगर तो ऐसे तुम
मन अपना दुखी नहीं करना
शायद मन के किसी कोने में
अहसास दबा हो मेरे लिए,

क्यों फेर के नज़रें निकल गए,
मुस्कान दबी रही होंठों पर,
न नमन किया ना अदब किया
ना दोस्ती का ऐतबार किया,
नित रोज़ बदलती हालत पर
इस आती जाती फितरत पर
कभी ढूंढ के अपना घर देखो
कोई किरदार छिपा हो मेरे लिए,

जो बीत गयी सो बीत गई,
अब देखो नयी बहारों को,
सूरज चंदा और तारे
सब मिल जुल कर रहते सारे
देते अंजाम नजारों को,
तुम भी अपने दिल आँगन में
नयनों में प्यार सजा देखो –
इन नफरत की आंधी में भी
कोई दीपक जलता हो मेरे लिए,

दिन रात बदलते रहते है,
ऋतुएँ भी आती जाती है
कभी है पतझड़ कभी है बसंत,
पर खुशियां जीवन में अनंत,
हर पल उस प्रभु की इनायत है,
हर पल उस से सुखदायक है
मन में ना कोई वहम करो,
तुम काम सदा यह अहम करो
खुद सोचो उसकी रहमत में,
उपकार भरा है मेरे लिये…

यूं नफरत से न देखो मुझको,
कुछ अपने दिल में भी झांकों
कहीं प्यार छुपा हो मेरे लिए,
कोई इकरार छिपा हो मेरे लिए,

 

०९/०२/२०१५ –जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

4 thoughts on “कहीं प्यार छुपा हो मेरे लिए,

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब , वाह वाह .

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया गीत !

  • मीनाक्षी सुकुमारन

    यूं नफरत से न देखो मुझको,
    कुछ अपने दिल में भी झांकों
    कहीं प्यार छुपा हो मेरे लिए,
    कोई इकरार छिपा हो मेरे लिए,

  • मीनाक्षी सुकुमारन

    बेहद खूबसूरत

Comments are closed.