उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 29)
26. बगलाना मेें उत्सुकता
बगलाना के छोटे से महल का एक कक्ष, आमने-सामने आसन पर राजा कर्ण और राजकुमारी देवलदेवी बैठे हैं। राजा सामने रखे मद्य के गिलास को उठाकर ओष्ठ से लगाते हैं राजकुमारी उठकर राजा के हाथ से गिलास लेते हुए कहती है ”अब ओर नहीं पिताजी, इस समय मद्य सेवन आपके स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है।“
”स्वास्थ्य, अब स्वास्थ्य की चिंता किस हेतु पुत्री! महलों के ऐश्वर्य के स्थान पर मार्ग की धूल जिसका भाग्य बन चुकी हो, उस भाग्यहीन के अस्वस्थ होने से संसार को क्या फर्क पड़ेगा?“
”तो क्या पिताजी को मेरी कोई चिंता नहीं, क्या मेरे शुभ हेतु आप इस मद्यपान का त्याग नहीं कर सकते?“
”तेरा शुभ, अवश्य पुत्री। तेरे शुभ हेतु में मदिरा पान का त्याग कर दूँगा, अन्य व्यसनों से भी मुक्ति पाने का प्रयत्न करूँगा। पर किस प्रकार करूँ तेरा शुभ। कोई मार्ग नहीं सूझता है पुत्री। तू ही कह क्या तूने कोई हेतु सोचा है अपने शुभ का?“
”हाँ पिताजी।“
”तो कह।“
देवलदेवी के चेहरे पर तनिक लाज आती है, वह सिर को नीचाकर पृथ्वी को देखते हुए बोली, ”पिताजी युवराज शंकरदेव को मेरे वर रूप में स्वीकार करके। यही मेरा शुभ है, मेरा मंगल।“
”ओह नहीं पुत्री, यादव राज, दिल्ली सुल्तान का मित्र है, तू वहाँ सुरक्षित नहीं रहेगी। दिल्ली के बरीठ और कूटनी देवगिरी के राजमहल में सर्वत्र फैले हैं। तुझे संभवता ज्ञात नहीं अलाउद्दीन की कुदृष्टि देवगिरी की राजकुमारी छिताई पर भी है। राजा रामदेव मित्रता स्वरूप अपनी एक राजकुमारी अलाउद्दीन को भेंट कर चुका है। नहीं-नहीं पुत्री, तेरा इसमें शुभ नहीं है।“
”किंतु पिताजी, युवराज तो वीर और कर्मठ हैं। उनके पिता के किए हुए कृत्यों में उनका क्या दोष। और फिर मैं (तनिक लजाते हुए) उनसे गंधर्व विवाह कर चुकी हूँ।“
”ओह पुत्री!…“ राजा कर्ण कुछ कहना चाहते हैं तभी प्रहरी आकर उन्हें प्रणाम करता है।
”कहो प्रहरी।“
”महाराज गुप्तचर आपसे मिलने का अभिलाषी है।“
”उसे अंदर भेजो।“
”कहो रनमल, क्या कोई विशेष सूचना?“
”हाँ महाराज…“ रनमल अभी आगे कुछ ओर बोलना चाहता है, तभी प्रहरी का पुनः प्रवेश।
”महाराज, प्रणाम, देवगिरी के राजकुमार भीमदेव पधारे हैं।“
राजा कर्ण ”राजकुमार भीमदेव यूँ अकस्मात्। बिना पूर्वसूचना के, क्या उन्होंने कुछ निवेदन किया?“
प्रहरी ”नहीं महाराज, बस इतना कहा वह युवराज की आज्ञा से आए हैं।“
राजा कर्ण ”युवराज की आज्ञा, (देवलदेवी की ओर देखकर) कोई विशेष प्रयोजन?“
देवलदेवी ”कदाचित उन्होंने मुझे देवगिरी बुलाने का प्रबंध किया है।“
राजा कर्ण ”मेरी पुत्री के बुलाने का प्रबंध, हम उनकी शरण में हैं, इसका अर्थ यह नहीं वह हमारी सहमति भी प्राप्त न करें।“
देवलदेवी ”पिताजी, मैंने कहा था, हम गंधर्व परिणय में बँध चुके हैं, उन्हें हमारी सहमति प्राप्त है।“
राजा कर्ण दायें हाथ की मुष्ठिका बायें हाथ की हथेली पर मारते हुए, ”ओह पुत्री…।“ फिर तनिक रूककर प्रहरी से ”जाओ प्रहरी, राजकुमार को सम्मान के साथ ठहराओ, हम उनसे शीघ्र भेंट करेंगे।“
राजा कर्ण तनिक देर ठहरकर गुप्तचर से बोले, ”हाँ रनमल, तुम कुछ कह रहे थे।“
”महाराज, महारानी कमलावती, राजकुमारी को देखने के लिए लालायित है। सूचना है कि दिल्ली के सिपहसालार मलिक काफूर को इसके प्रबंध हेतु नियुक्त किया गया है।“
”ओह, वह कुलटा।“ इतना कहकर राजा कर्ण धम्म से बैठ जाते हैं। देवलदेवी व्यग्रता से टहलने लगती है।
राजा कर्ण ”पुत्री देवल! देखा अब वो कुलटा धर्म और नारी जाति को कलंकित करने के बाद पुत्री को कलंकित करना चाहती है। कितना कलुषित हो गया है उसका मन।“
देवलदेवी ”पिताजी, अब वह मेरा माँ या महारानी कमलावती नहीं रही। अब वह दिल्ली अधिपति की पटरानी ‘मलिका-ए-हिंद है। उनसे इसी तरह के किसी कृत्य की आशा थी।“
राजा कर्ण ”तुम ठीक कहती हो राजकुमारी। संभवता तुम ठीक हो, जाओ पुत्री तैयारी करो। हम तुम्हें देवगिरी भेजने का प्रबंध करते हैं। जब माँ ही अपनी पुत्री की शत्रु हो जाए तो उसे अपने पति के पास ही अधिकतम सुरक्षा प्राप्त होती है।“
देवलदेवी ”मैं आपकी पीड़ा समझती हूँ पिताजी महाराज, पर क्या करें संकट के समय में धर्म की रक्षा के लिए जो उचित सध पा रहा है, हम वही करने का प्रयास कर रहे हैं।“
”जा पुत्री जा, मैं प्रबंध करता हूँ। ईश्वर तुम्हें सुखी रखे।“
फिर देवलदेवी राजा कर्ण को प्रणाम करके चली जाती है। और राजा कर्ण, गुप्तचर से किसी मंत्रणा में व्यस्त हो जाते हैं।