अनुपम सौन्दर्य है नायाब
पीले पुष्पों की हुई है बरसात
घना है कोहरे का बाहुपाश
दूबों के सर के
ओस कण बने हैं ताज
ओझल हुए से लग रहे हैं
वृक्षों के उलझे हुए शाख
खेतों के जल के दर्पण में
धीरे धीरे परछाईयाँ
ले रही हैं आकार
धरती पर जैसे उतर
आया हो सिंदूरी आकाश
सोच रही है वसुंधरा
कोई तो होगा
दिवस अवसान तक अब साथ
बिखरी हैं पीत वर्णीय धराशायी पंखुरियाँ
मानों हो वे रंगोली के कतार
काले मेघों के जमघट को कर पार
बड़ी कठिनाई से
पहुँच पाया है
भोर का यह धुन्धला प्रकाश
शुरू हो गया है कलरव
रंभाने लगी है गाय
गगन की दिशाए हैं अनजान
उड़ कर जाने लगे हैं नभ में
फिर भी
बगुलें अपने पंख पसार
एकाएक बरस पड़ी है सावन की बौछार
प्रचंड वेग से बहने लगी है
नदियाँ की उल्लसित धार
तार पर बैठी नन्ही चिड़ियाँ
विचार मग्न है
कहाँ से लाऊंगी आज
बच्चों के लिए आहार
भींगे भींगे से इस मौसम में
मुझसे मेरा मन कहता है
न किया करो मित्र
इस जीवन में
किसी उत्तर की तलाश
ये दुनियाँ है एक
अनुत्तरित सवाल
प्रकृति का यह
अनुपम सौन्दर्य है नायाब
तटस्थ हो कर
इसे करना हैं बस आत्मसात
किशोर कुमार खोरेन्द्र
बहुत सुंदर !
shukriya
वाह वाह, इन पक्षिओं से ही हमारा संसार पुछप बन लगता है.
thank u