गीतिका/ग़ज़ल

अभिमन्यु वध

अभिमन्यु का वध हो गया, एक बार फिर दिल्ली में,

सभी विरोधी हुए इकट्ठा, एक बार फिर दिल्ली में।

मुस्लिम तुष्टिकरण की बातें, इस्लामिक मुल्कों से चन्दा,

देख रही थी सारी दुनिया,एक बार फिर दिल्ली में।

नहीं जरुरत कोई काम की, मुफ्त में बिजली- पानी लो,

झाड़ू ने समझाया सबको, एक बार फिर दिल्ली में।

ईसा- मूसा सारे मिलकर, हुए इकट्ठा रण क्षेत्र में,

माया, ममता और मुलायम, एक बार फिर दिल्ली में।

राजद, जदयू और वामपंथ, एक लक्ष्य औ एक ही नारा,

जीते कोई बस हारे भाजपा, एक बार फिर दिल्ली में।

घर के अन्दर चंद लोग भी, खेल रहे थे खेल यह काला,

देखा जयचन्दों को सबने, एक बार फिर दिल्ली में।

काला धन चैकों के जरिये, कैसे सफेदपोश बन जाता,

देखा-समझा, जांचा-परखा, एक बार फिर दिल्ली में।

आम आदमी की बातें कर, ख़ास आदमी जो बनते,

धरना- प्रदर्शन वालों को सत्ता, एक बार फिर दिल्ली में।

 

डॉ अ कीर्तिवर्धन

2 thoughts on “अभिमन्यु वध

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा व्यंग्यात्मक गीत !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब , अच्छी ग़ज़ल और साथ ही विअंघ.

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