तुम्हारे बारे में विचार
तुम केंद्र बिंदु हो
मैं हूँ हिसार
मैं एक कोरा पन्ना हूँ
तुम हो पूरी किताब
तुम नींव हो
मैं हूँ दीवार
मैं तीरगी हूँ
तुम हो चिराग
तुम मंदिर का स्वर्ण कलश हो
मैं हूँ जर्जर मीनार
मैं रिवाज हूँ
तुम हो उसके खिलाफ
तुम पाक रूह हो
मैं हूँ मलीन लिबास
मुझमे बाकी है अब तक विकार
अपने मन पर है तुम्हारा
सम्पूर्ण अधिकार
तुम सोच से परे हो
मैं किया करता हूँ
फिर भी
तुम्हारे बारे में विचार
तुम हिजाब हो
रहता हैं फिर भी
मुझे तुम्हारा इंतिजार
मैं कभी कभी
तुम्हारी परवाह नहीं करता हूँ
तब भी तुम
मुझ पर हो निसार
तुम केंद्र बिंदु हो
मैं हूँ हिसार
किशोर कुमार खोरेन्द्र
{हिसार =परिधि ,तीरगी =अंधकार ,रिवाज =परंपरा ,हिजाब =संकोच, निगार =प्रतिमा निसार =न्योछावर ,}
अच्छी कविता है.