“अबला”
डर के मारे सहमी हुई थी,
याचना भरी निगाहों से देख रही थी
उन लोगो के बीच में थी,
जो लोग सत्यमेव पाठ पढ़ाते हैं।
पढ़ाते है सत्यमेव का पाठ,
लेकिन दूसरों को,
खुद नहीं चल पाते है,
अपने बनाए हुए रास्ते पर,
वे लोग थे मुगलसराय के,
रेलवे पुलिस फोर्स।
उस अबला से करते है दुर्व्यवहार।
कई तरह की बातें बोलते,
फिर भी सहमी हुई वो अबला।
चच्चा बाबू की याद दिलाती।
याद दिलाना ही हुआ कसूर,
किये उसको ये लोग प्रताड़ित।
लगी वही पर रूदन करने,
झरझर आशु लगे गिरने!!
था दो फरवरी वर्ष पन्द्रह,
यही था आँखों देखा हाल।
——-रमेश कुमार सिंह ♌
——-०२-०२-२०१५
सुंदर कविता लेकिन यह घटना शर्मनाक है।
शुक्रिया,शर्मनाक तो है ही।
बहुत बुरा हो रहा है.
हाँ श्रीमान जी मेरे आँखों के सामने ऐसा हुआ लेकिन मैं कुछ कर नहीं पाया।
अच्छी कविता !
सधन्यवाद श्रीमान जी।