कविता – अनकही !
है सदा तमन्ना मेरे दिल में, कुछ तुझ सी बातें पाने की
कभी तुझमे जो है पाने की, कभी बस तुझको ही पाने की
है लाख अदाएं तेरी उसमे
एक तो है मेरे ही लिए
यूँ ही तो नहीं मिलता ही कोई
राहों से गुजर जाने के लिए
यह आस रही मेरे दिल में ,कुछ साथ सा तेरा पाने की
कभी नजरों से ही मिलने की ,कभी हाथो में हाथ मिलाने की
जो बही हवाएं छूकर तुझको
मुझ तक भी तो आती है कभी
यूँ ही क्यूँ मैं गिनुं फासले
करीब तेरे आने के लिए
है बेताबी गीतों में मेरे ,कुछ लब से तेरे छूने की
कभी दूर से ही सुनाने की ,कभी साथ में तेरे गाने की
मैं तेरी आँखों में जब भी देखूं
तस्वीर तो मेरी दिखाती है
फिर क्यूँ दिल में तेरे झाँकू
सपनो में तेरे रहने के लिए
हसरत भी है दिल में मेरे ,कुछ प्यार सा तेरा पाने की
कभी चकोर बन भटकने की ,कभी बादल बन लिपटने की
लफ्जों को तो न कहा था हमने
शायरी सी गुस्ताखी करने को
न तेरा कुछ भी पाने को
न तुझ सा कुछ भी खोने को
जब बिना कहे भी सुनती रही हर बात तू मेरे धड़कन की
कुछ कह दी है अपने मन की कुछ सुन ली है तेरे मन की
बहुत बढ़िया
अच्छी कविता.
धन्यवाद ! भामराजी ! आभार |
बहुत खूब ! बहुत सुन्दर प्रेम कविता !
बहोत बहोत आभार बड़े बंधू !