आकर्षण
तुम वो सार्थक शब्द हो
जिसके बिना
बिखरा हुआ सा
रह जाता है
मेरे अक्षरों का संगठन
तुम छंद हो
तुमसे आबद्ध हुऐ बिना
निर्रथक हैं
मेरे रस अलंकार के विवरण
मैं रच नहीं पाता कविता
किये बिना
तुम्हारे
अनुपम सौंदर्य का दर्शन
मेरा मन करता रहता है
निरंतर तुम्हारा स्मरण
तुम मेरी प्रेरणा हो
जिसके बिना
ठहर सा जाता है
मेरा लेखन
प्रेम के लिए
जरुरी है
मन से मन का बंधन
मिथ्या है देह से देह का
आकर्षण
किशोर कुमार खोरेन्द्र
वाह वाह !
बहुत खूब , रिश्ता तो रूह का ही होता है .
बहुत सुंदर रचना