सौन्दर्य
तुम्हारे मन के
सौन्दर्य पर मैं हूँ मोहित
मेरे ह्रदय की घाटियों कों
सूर्योदय सा …
तुम ही करती हो सुशोभित
यदि तुम यह जान भी जाओ कि
मैं तुमसे ही हूँ आकर्षित
तुम मुझसे
कभी नाराज न होना
क्योंकि मेरी
हर बात सदा रहेगी
तुम्हारे आंतरिक रूप की
प्रशंसा पर ही केन्द्रित
कनेर के पीले
गुलाब के गुलाबी
गुड़हल के लाल
मोंगरे के दुधिया
और सदाबहार के फूलों की तरह
तुम मेरे मन के
उपवन में जो रहती हो मुकुलित
इस जग में कोई भी किसी के सदा
नहीं रहा सकता हैं समीप
इसलिए
मैं तुम्हे अपने ख्यालों में
अपनी कल्पनाओं के रंग से
कर लिया करता हूँ चित्रित
किशोर कुमार खोरेन्द्र
किशोर जी , कविता लिखते हो मज़ा ही आ जाता है. धन्यवाद.
shukriya