कविता

जो घूमते हैं नेता बनके

एक कुरसी की कीमत तुम क्या जानो
उसका मजा सिर्फ सुनते ही मानो
हर कोई लगा है एक रेस में
वो ही बने राजा इस देश में
सब ऊंचा पद पाने के लिए लड़ते हैं
वहीं बारिश में अनाज भीग के सड़ते हैं
जिस थाली में खाते उसी में छेद करते हैं
हम उन्हें देखकर यूं ही खेद करते हैं
करोड़ों के जो घोटाले करते
दूसरों के जो भांडे फोड़ते
विकास के पैसे जेब में गटकते
चुनाव के समय गांव गांव भटकते
गरीबों की जो रोटी छीनते
मशीनों से वो पैसे गिनते
उनके ही घर में सोना खनके
जो घूमते हैं नेता बन के।

मयूर जसवानी 

मयूर जसवानी

Nothing to say about me. Because I'm EMPTY. Whatever I'll say,you can't belive as far as you don't get profe, so its better to be Unknown and become Colse. Think About It & even you want to know about me then 1sf of all, "Keep EMPTY Your Self"

One thought on “जो घूमते हैं नेता बनके

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुन्दर और यथार्थ भरपूर कविता . बस , देश की किस को परवाह, किस्सा कुर्सी का.

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