उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 33)
घोड़े पर सवार जिरह बख्तर पहने अल्प खाँ राजकुमार को देखकर चिल्लाकर कहता है ”अरे ओ काफिर, तू तो अभी बच्चा है। राजकुमारी को हमारे हवाले कर और सुन्नत कबूल कर ले। हम तेरी सुल्तान से सिफारिश कर देंगे। जीवित रह जाएगा।“
”सुन्नत कबूल कर लें? क्या बकता है अल्प खाँ? क्या तुझे ज्ञात नहीं हम यादव कुमार भीमदेव हैं। अरे गुर्जर राजकुमारी का डोला माँगने वाले, जरा सामने आ और मेरी तलवार की धार तो देख।“
राजकुमार भीम के इतने कहते ही अल्प खाँ गुस्से से पागल हो उठा, उसने तुरंत लश्कर को हुक्म दिया ‘मार दो इन काफिरों को, कोई जिंदा न बचे और छीन लो देवलदेवी का डोला। पालकी के अंदर यह देवलदेवी ने सुना तो उसकी आँखों से अपने दुर्भाग्य पे अश्रु उबल पड़े। सूबेदार अल्प खाँ की बात सुनकर अल्लाह-अल्लाह करती मुस्लिम सेना उन हजार-बारह सौ यादव वीरों पर टूट पड़ी। यादव वीर पाँच-पाँच मुस्लिम सैनिकों को मार-मारकर यश कीर्ति अर्जित करते रणभूमि में स्वधर्म रक्षा हेतु वीरगति को प्राप्त होने लगे।
यादव वीरों को यूँ तेजी से कटते देख, राजकुमार भीम वैरी दल में घुसने लगा। उसकी तलवार की मार से वैरियों की सेना में अल्लाह-अल्लाह की जगह हाय-हाय मचने लगी। राजकुमार को यूँ मुस्लिम सेना में तबाही मचाते देख, अल्प खाँ ने मीर इब्राहिम को हुक्म दिया, जाओ इस पाजी का सिर कलम कर दो या जिंदा पकड़ लाओ।
मीर इब्राहिम और कुमार भीम का आमना-सामना हो गया। अब तक कुमार भीम ने खोपड़ियों के ढेर लगा दिए थे। उसका हाथ जिस सिर पर पड़ता वह सिर खरबूजे की तरह फट जाता। मीर इब्राहिम ने उन्हें ललकारा अरे रुक तो काफिर। और फिर दोनों भिड़ गए। मीर ने ताककर वार किया जिसने कुमार के पेट को फाड़ दिया, पर धन्य रे वीर युवक उसने गिरते-गिरते मीर इब्राहिम का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया। इसी वक्त एक तीर आकर उसकी दायीं जाँघ में लगा और वह मरणासन्न पृथ्वी की गोद में गिर पड़े।
कुमार भीम के गिरते ही मुस्लिम सेना का जोर ओर बढ़ गया और उसने कुछ ही देर में बचे हुए हिंदुओं को काट डाला। राजकुमारी देवलदेवी के पालकी के कहार भी मार दिए गए। देवलदेवी और प्रमिला पालकी से उतरकर भागकर कुमार भीमदेव के पास पहुँची।
बुझती आँखों से भीमदेव ने देवलदेवी और प्रमिला को देखा, फिर टूटती आवाज में अवरूद्ध कंठ से कहा ”क्षमा करें भाभी, मैं तुम्हारी रक्षा न कर सका। प्रमिला देखो हम आपसे ‘प्रणय निवेदन’ भी न कर सके।“ कहते-कहते भीमदेव की साँसें फूलने लगती हैं।
प्रमिला कुमार भीम के घावों को अपनी चूनर से बाँधते हुए बोली ”नहीं कुमार, हम आपका प्रणय निवेदन स्वीकार करते हैं, हम भी आपके साथ प्रयाण करेंगे। अब हमारा मिलन स्वर्ग में ही होगा।“
”नहीं प्रमिले, तुम्हें राजकुमारी के साथ रहना है, उन्हें ढाँढ़स बँधाना है।
‘भाभी…“
देवलदेवी ”हाँ, कुमार।“
भीमदेव ”आप भागने का यत्न कीजिए, जाइए।“
देवलदेवी ”व्यर्थ है कुमार, चारों ओर टिड्डी दल की तरह यवन फैले हैं।“
भीमदेव ”फिर मुझे दिया हुआ वचन?“
देवलदेवी ”तन-मन अर्पित करके पूर्ण करूँगी।“
तभी वहाँ अल्प खाँ आ धमकता है, भीमदेव की साँसें चलती देखकर, अपनी तलवार उसके सीने में भौंक देता है। ‘या कृष्ण मुरारे…’ के साथ वीर कुमार भीमदेव का प्रणांत हो जाता है।
देवलदेवी उठकर अल्प खाँ को देखकर बोली ”अरे नराधम, एक मरणासन्न वीर को यूँ मारते तुझे लज्जा नहीं आती।“
”लज्जा“, अल्प खाँ अट्ठाहस करते हुए बोला ”तुझे सुल्तान के हरम में न पहुँचाना होता तो अभी तेरी लज्जा की धज्जियाँ उड़ा देता। यह देख तेरी दासियों और सखियों की लज्जा के साथ क्या हो रहा है।“
देवलदेवी देखती है, चारों ओर मुस्लिम सेना उसके साथ आई युवतियों से बलात्कार कर रही है, वह चीख-चिल्ला रही हैं, पर उन्हें बचाने वाला कोई नहीं। देवलदेवी मूर्छित होकर गिरती है। अल्प खाँ उन्हें कंधे पर उठाकर अपने लश्कर की तरफ चल देता है। देवलदेवी और उनके साथ आई सभी युवतियों को अल्प खाँ हिरासत में ले लेता है। भीमदेव और उसके हजार योद्धा मर जाते हैं। पाँच हजार मुस्लिम सैनिक भी इस जंग में काम आते हैं।