कविता

मुस्कुराना

ह्मे लोगो ने मुस्कुराते देखा
अंधेरो मे दीप जगमगाते देखा
उन्होने इसे ढोंग समझा
पर मुस्कुराना हमारी फ़ितरत मे है
दर्द भी हो सीने में
तब भी मुस्कुराना
हमारी आदत मे है
इस आदत से लोग
धोखा खा गये
हुंसे हमारी खुशी की
कीमत माँगने लगे
हम कीमत देकर
फिर मुस्कुराने लगे
और वो कीमत पाकर
हमारी हँसी को
नीलम करवाते रहे I

अंकजा दुबे

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One thought on “मुस्कुराना

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बेटा जी , कविता बहुत अच्छी लगी , एक दफा १९५८ में भोग पुर गिया था , यूंही याद आ गई.

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