गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

आँखों में उनके दीदार की हसरत लिए हुए
राहों में पलकें बिछाये जानें कब से बैठे हैं

बह न जाये आँसूओं संग कहीं तस्वीर उनकी
आँखों में सैलाब छुपाये जाने कब से बैठे हैं

लौट न जायें कहीं वो देखकर घर में अँधेरा
चरागो को रौशन किये हुए जाने कब से बैठे हैं

दिन तो ढल जाता है तकते हुए राह-ए-महबूब
हुई रात तो गज़लों का साथ लिए जाने कब से बैठे हैं

बस इक उन्हें ही अपना बनाने की आरजू में
दुनिया को बेगाना किये हुए जाने कब से बैठे हैं ।

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - priyavachhani26@gmail.com

One thought on “गज़ल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.

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