कविता

कविता : तरु शिखा पर झूलते कल्पित सपन

तरु शिखा पर झूलते कल्पित सपन

दरिद्र आकांछाएं चूमती नील गगन

चहकती अंगना भर जीवन संगीत

अदृश्य कड़ियों जकड़ी टूटे न बंधन ।

दिवसावसान साक्ष्य रात प्रहरी

डूबी अवसान किरण सुनहरी

गूँजते दिव्य दिशाओं में गीत

पवन प्रज्वलित दीप जोह प्रीत देहरी ।

रीझ रीझ अलि मुस्काये

कुसुम कली निज इतराए

छेड़ पवन उड़ उड़ जाए

मधुवन सुर राग सुनाये ।

 

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

2 thoughts on “कविता : तरु शिखा पर झूलते कल्पित सपन

  • गुंजन अग्रवाल

    shukriya ji

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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