कविता : तरु शिखा पर झूलते कल्पित सपन
तरु शिखा पर झूलते कल्पित सपन
दरिद्र आकांछाएं चूमती नील गगन
चहकती अंगना भर जीवन संगीत
अदृश्य कड़ियों जकड़ी टूटे न बंधन ।
दिवसावसान साक्ष्य रात प्रहरी
डूबी अवसान किरण सुनहरी
गूँजते दिव्य दिशाओं में गीत
पवन प्रज्वलित दीप जोह प्रीत देहरी ।
रीझ रीझ अलि मुस्काये
कुसुम कली निज इतराए
छेड़ पवन उड़ उड़ जाए
मधुवन सुर राग सुनाये ।
shukriya ji
बहुत खूब .