सामाजिक

आरक्षण आर्थिक आधार पर लागू हुआ फिर सवर्णों द्वारा विरोध क्यों?

12 अप्रैल 2012 वह एतिहासिक दिन था जब देश के सभी प्राइवेट स्कूलों मे (अल्पसंख्यक गैर सहायता प्राप्त को छोड़कर व जम्मू कश्मीर को पूरा छोड़कर) 25% स्थान ग़रीबों को देने संबंधी क़ानून को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी और इस क़ानून के पालन होने का मार्ग प्रशस्त किया और प्राइवेट स्कूलों को बोला गया की वो अपने यहाँ ये नियम लागू करें. ये देश की बहुसंख्यक आबादी की जीत थी जिस पर ख़ुशियाँ जाहिर करना लाजमी था. पर आश्चर्यजनक रूप से ये ख़ुशियाँ सिर्फ़ 24 से 48 घंटे ही दिख पाई और तुरंत किंतु परंतु के जाल मे उलझ कर रह गयीं.

स्पष्ट कहें तो प्राइवेट स्कूलों मे प्राथमिक स्तर की सभी सीटों मे 25% आरक्षण आर्थिक आधार पर देश के समस्त समाजों के ग़रीबों के लिए कर दिया गया. आरक्षण हमारे देश मे कोई नया नियम नहीं है. लेकिन एक अंतर है जो प्राइवेट स्कूलों मे ग़रीब बच्चों के 25% आरक्षण को खास बनाता है और वो है इसका जाति पर आधारित न होकर आर्थिक मापदंडों पर आधारित होना.

लेकिन आप ध्यान से देखिए. इस आरक्षण के लागू होने और अन्य जाति आधारित आरक्षणों के लागू होने मे देश की प्रतिक्रिया मे क्या अंतर था? जो अंतर मुझे प्रतीत हुए, वो इस प्रकार से थे:

  • क्लियर नहीं कि आख़िर ग़रीब है कौन? तो लाभ किसे मिलेगा?
  • लोग लगभग आश्वस्त थे की ये आरक्षण सफल नहीं हो पाएगा!
  • लोगों को बिल्लकुल भी विश्वास नहीं था कि वास्तविक ग़रीब लोग इसका फ़ायदा उठा पाएँगे.
  • लोगों को पूरा विश्वास था की प्राइवेट स्कूल इसका तोड़ निकाल लेंगे और इसका लाभ ग़रीबों को नहीं मिलने देंगे. आदि आदि….

आपको मालूम होगा की जाती आधारित किसी भी आरक्षण मे ये सवाल नहीं खड़े हुए थे और लाभान्वित होने वाले वर्ग पर कोई सवाल नहीं था. ओ0बी0सी0 मे भी सवाल क्रीमी लेयर पर हुआ था, जहाँ आर्थिक आधार को शामिल किया गया.

इसके अलावा लोगों के मन में तरह तरह के सवाल कुलबुला रहे थे –

  • ग़रीब खुद को ग़रीब सिद्ध कर पाएगा?
  • ग़रीब की जगह कोई दूसरा व्यक्ति जाली इनकम सर्टिफिकेट बनवाकर आसानी से ग़रीब की सीट नहीं हथिया लेगा?
  • अगर प्राइवेट स्कूलों मे भी ग़रीब बच्चे आ गये तो उस माहौल का क्या होगा जिसके लिए अमीर अभिभावक पैसा खर्च करते हैं?
  • सरकार अपने स्कूलों को क्यों नहीं सुधारती?
  • क्या बदबू मार रहे बच्चे के पास हमारे बच्चे बैठ पाएँगे?
  • क्या गारंटी है की ग़रीब बच्चे को कुपोषण और गंदगी के चलते टीबी जैसी बीमारियाँ नहीं होंगी?
  • ग़रीब बच्चे हमारे बच्चों को ग़लत संस्कार सिखा कर बिगाड़ नहीं देंगे?
  • ग़रीब बच्चे अमीर बच्चों की तरह सुविधा तो पाएँगे नहीं, तो क्या उनके मन मे अमीरो के प्रति ईर्ष्या नहीं होगी?
  • क्या ग़रीब बच्चे अमीरी बच्चों के साथ सहज होकर पढ़ पाएँगे?
  • ग़रीब बच्चों का होम वर्क कौन कराएगा?
  • ग़रीब बच्चा जब अमीर बच्चे को स्कूल मे खाते पीते देखेगा तो उसे अवसाद नहीं होगा?
  • ग़रीब बच्चा जब 8 साल एसी मे रहकर पढ़ेगा तो वह अपने घर पर कैसे एडजस्ट करेगा?
  • क्या प्राइवेट स्कूल का आलीशान और दूसरी तरफ ग़रीबी का घरेलू वातावरण उसकी जिंदगी को तोड़ मरोड़ नहीं देगा?
  • क्या ग़रीब बच्चे के मा-बाप कभी भी स्कूल आकर कुछ पूछ पाएँगे? तो बच्चे का अभिभावक कौन होगा?
  • अगर बच्चा पढ़ाई मे चल निकला, तो क्या वो अपने मा बाप को पहचानने से इनकार नहीं कर देगा?
  • जो बच्चा KG अटेंड ही नहीं किया, वो प्राइमरी मे कैसे पढ़ेगा?
  • 6 साल तक बच्चा क्या करेगा? 14 साल के बाद बच्चा क्या करेगा?
  • 8 वीं पास का सर्टिफिकेट उसके किस काम आएगा?
  • स्कूल उसे बिना पढ़ाए ही पास करता रहा तो वो घर का रहेगा न घाट का!
  • सरकारी स्कूलों मे टीचर नहीं और प्राइवेट पर ये बोझ क्यों?
  • राज्य तो कह रहे हैं की वो अभी तक इस क़ानून के लिए तैयार ही नहीं हैं!!
  • किताबों का खर्च कौन देगा?
  • फीस कौन देगा?
  • उनके प्रॉजेक्ट कौन बनवाएगा?
  • माँ-बाप ने बच्चा स्कूल नहीं भेजा तो कौन ज़िम्मेदार होगा? आदि आदि….

सवाल करना बुरा नहीं है और हम सभी इसे अपना हक मानते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है की ये सवाल तभी उठे हैं जब आरक्षण ग़रीबी के आधार पर किया गया है, बल्कि जाति के आधार पर जो भी आरक्षण हैं, उनके बारे मे लोग निम्न प्रकार के सवाल करते पाए जाते हैं :

  • जातीय आरक्षण समाज को बाँटता है, ये आर्थिक आधार पर होना चाहिए,
  • ग़रीबी जाती देख कर नहीं आती, तो आरक्षण जाती के आधार पर क्यों?
  • सब जातियों मे ग़रीब हैं, तो आरक्षण सिर्फ़ कुछ को क्यों?
  • भेदभाव सिर्फ़ ग़रीब के साथ होता है, तो आरक्षण भी ग़रीबी के आधार पर हो.
  • दुनिया मे सिर्फ़ दो वर्ग हैं, “हॅव्स” एंड “हॅव नॉट्स”!! आरक्षण सिर्फ़ “हॅव नॉट्स” को मिलना चाहिए.
  • खाते पीते दलित/ पिछड़े आरक्षण का सारा फ़ायदा ले लेते हैं, आरक्षण सिर्फ़ ग़रीबों को मिलना चाहिए!
  • ग़रीब के लिए सरकार कुछ नहीं करती, बस वोट बैंक के लिए तरह तरह के वर्गो मे समाज को बाँटकर उनका तुष्टिकरण करती है!
  • हर बुराई का मूल कारण ग़रीबी है, इसलिए ग़रीबी के आधार पर मौका मिले, ना की जाति के! आदि आदि….

उपरोक्त बातें बहुतों के लिए सही और बहुतों के लिए ग़लत हो सकती हैं. पर सवाल ये है की जो लोग आरक्षण के आर्थिक आधार की वकालत करते हैं, आज वे लोग शिक्षा जैसे बुनियादी क्षेत्र मे लागू किए गये इस 25% आरक्षण की इतनी खिलाफत क्यों कर रहे हैं? खिलाफत करने वालों मे स्कूल और अभिभावक दोनो ही शामिल हैं. अगर स्कूल अपनी आमदनी और ब्रांड वैल्यू को लेकर चिंतित है तो अभिभावक वैल्यू एडेड सर्विस की गुणवत्ता को लेकर!! सुना है की गुरुकुल मे भी अमीर ग़रीब सब साथ पढ़ते थे, तो आज अमीर ग़रीब के साथ साथ पढ़ने मे इतना एतराज क्यों? वो भी तब जब की सरकार इन स्कूलों को ग़रीब बच्चों पर किया गया खर्च खुद वहन करेगी. प्राइवेट स्कूल कोई मुफ़्त मे ग़रीब जनता पर एहसान नहीं करेंगे!

वैसे भी सरकार को ये कदम बहुत इंतजार के बाद उठाना पड़ा है. जब खुद समाज और प्राइवेट तंत्र देश के विकास मे भागीदारी नहीं निभाने को आगे आया तो सरकार को ज़बरदस्ती क़ानून बनाना ही पड़ा. जब शिक्षा के अधिकार का क़ानून बना था तो यही शिक्षा तंत्र देश हित मे इसका सहयोग करने के बजाए इसके खिलाफ कोर्ट चला गया और जब आज कोर्ट भी क़ानून को सही माना है तो अब स्कूल तरह तरह की कोशिशे इससे बचने की कर रहे हैं जो की एक स्वस्थ राष्ट्रीयता का संकेत बिल्कुल नहीं कहा जा सकता.

मुद्दा ये है की अब आर्थिक आधार पर एक आरक्षण लागू हुआ है जो देश निर्माण मे सहायक होगा. ये किसी जाति-पाती की बात भी नहीं करता है, फिर इसे लागू करवाने मे सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग क्यों नहीं? अब क्या बहाना है?

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

One thought on “आरक्षण आर्थिक आधार पर लागू हुआ फिर सवर्णों द्वारा विरोध क्यों?

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने अच्छे सवाल उठाये हैं. लेकिन इनका जबाब कौन देगा?

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