कविता

“माँ सहेली को ढूंढती हूँ “

देखी थी दुनिया चढ़ कर
हथेली पर जिसकी
आज वो हथेली को ढूंढती हूँ

चली थी मिलों साथ मेरे
नापने परिधि आकाश की
दिया था ढंग जीने का
बनी थी मैं निधि उनकी
अदम्य साहस वाली
वो माँ सहेली को ढूंढती हूँ

करो उपयोग हर दिन का
सिखाती थी घड़ी बन कर
लुटाओ ऊर्जा इतनी
गिरे ना कोई मन थक कर
अबूझ प्रयास वाली
वो माँ पहेली को ढूंढती हूँ

कोने से आँगन तक आना
सिखाई चाल साहस की
करो खुद व्यक्त अपने को
दिखाई राह उन्नत सी10906116_906006972765431_8551766840408388070_n
सुंदर मीनार वाली
वो माँ हवेली को ढूंढती हूँ

खिलाया पुष्प सा मुझ को
करो संत्रप्त सब का मन
सुबासित हो जगत सारा
बनाया सुंदर सा उपवन
गजरे की शान वाली
वो माँ चमेली को ढूंढती हूँ ॥

देखी थी दुनिया चढ़ कर
हथेली पर जिसकी
आज वो हथेली को ढूंढती हूँ

कल्पना मिश्रा बाजपेई

कल्पना मनोरमा

जन्म तिथि 4/6/1972 जन्म स्थान – औरैया, इटावा माता का नाम- स्व- श्रीमती मनोरमा मिश्रा पिता का नाम- श्री प्रकाश नारायण मिश्रा शिक्षा - एम.ए (हिन्दी) बी.एड कर्म क्षेत्र - अध्यापिका प्रकाशित कृतियाँ – सारंस समय का साझा संकलन,जीवंत हस्ताक्षर साझा संकलन, कानपुर हिंदुस्तान,निर्झर टाइम्स अखबार में,इंडियन हेल्प लाइन पत्रिका में लेख,अभिलेख, सुबोध सृजन अंतरजाल पत्रिका में। हमारी रचनाएँ पढ़ सकते हो । लेखन - स्वतंत्र लेखन संप्रति - इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य । सम्मान - मुक्तक मंच द्वारा (सम्मान गौरव दो बार )भाषा सहोदरी द्वारा (सहोदरी साहित्य ज्ञान सम्मान) साहित्य सृजन - अनेक कवितायें तुकांत एवं अतुकांत,गजल गीत ,नवगीत ,लेख और आलेख,कहानी ,लघु कथा इत्यादि ।

2 thoughts on ““माँ सहेली को ढूंढती हूँ “

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर कविता !

    • कल्पना मिश्रा बाजपेई

      आभार सिंघल साहब

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