कविता

होली के दोहे


होली आई री सखी , दिन भर करे धमाल
हरा गुलाबी पीत रंग , बरसे नेह गुलाल .

द्वारे पे गोरी खडी , पिया गए परदेश
नेह सिक्त पाती लिखी , आओ पिया स्वदेश

होरी की अठखेलियाँ , पकवानों में भंग
बिना बात किलकारियाँ , भंग दिखाए रंग

दिल ने दिल से बात की , अहं हमारा काम
रक्त करे संचार हम , प्रेम सरोवर धाम

नयन मिल गए नयन से , ह्रदय हुआ गुलजार
फूल प्रेम के खिल गए , तन मन दीना वार

भेद भाव से दूर ये , होली का त्यौहार
डूबा जोशो जश्न में , यह सारा संसार

अम्मा बाबू से कहे , खेले होरी आज
कहा तुनक कर उम्र का , कुछ तो करो लिहाज

शशि पुरवार

4 thoughts on “होली के दोहे

  • रमेश कुमार सिंह

    होली को दोहे के रूप में अच्छा दिखाया गया है सुन्दर रचना।

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे रोचक दोहे !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बेहद खुबसूरत

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