मधु यामिनी
छिटकी है चांदनी
अम्बर में
सितारों के नूर से भरी
बह रही है
एक और मंदाकनी
बादलों की ओट से
पूनम का चाँद भी
हमें झाँक रहा है
तुम्हारे और मेरे
मिलन की है
यह मधु यामिनी
शरमा कर तुम्हारे रुखसार
हो गए हैं शर्बती
नजदीक आने से डर रही हो
तृषित अधरों पर है कपकपी
छेड़ रही है दूर कहीं
सागर की लहरे मधुर रागिनी
आओ बंधन सारे खोल दूँ
सुर्ख परहन तुम्हारे हैं रेशमी
तुम्हारी काया खुद कंचन है
मुझे पसंद हैं यह सादगी
छिटकी है चांदनी
अम्बर में
सितारों के नूर से भरी
बह रही है
एक और मंदाकनी
किशोर कुमार खोरेन्द्र