कविता जीवनदायिनी…..क्षणिका प्रवीन मलिक 07/03/201507/03/2015 ले नदी सी गहराई अच्छा या बुरा जो मिले सब आजीवन ढ़ोती बनकर जीवन दायिनी हर रिश्ते को सींचती खुद को पूर्णत: भुलाकर सबके हितार्थ सोचती !! प्रवीन मलिक
वाह वाह !
बहुत खूब .