कविता

मेरे जीवन के रंग ….

किस रंग की बात करूँ मैं
हर रंग है मेरे पास
शायद खुदा की रहमत है मुझपर
और मैं भी हर रंग
जी भरकर लुटाती हूँ अपनों पर
चाहे फिर वो रंग
ममता का हो या स्नेह का
प्रेम का हो या फिर त्याग का
फर्ज का हो फिर हो मेरे कर्तव्यों का
जितना रंग मैं लुटाती हूँ ना
वो दुगुना हो मुझे मिल जाता है
कभी सम्मान का रंग तो कभी प्यार का
कभी इंद्रधनुषी आशिर्वाद के रुप में
सतरंगी हो जाता है मेरा जीवन
मुझे डर लगता है काले रंग से
काले रंग ने भी रह रहकर मुझे रंगा है
समय समय पर जीवन के कई मोड़ों पर
लेकिन जिसके पास हों सभी रंग
तो काले स्याह को महत्व ही कितना मिलता
तिरस्कृत हो जाना ही पड़ता है उसे
मेरे इंद्रधनुष के प्रभाव के सामने वो स्याह रंग
डरकर दुम दबाकर भाग जाता है
शायद खुदा की रहमत है मुझपर …….

प्रवीन मलिक …

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....

3 thoughts on “मेरे जीवन के रंग ….

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर !

  • रमेश कुमार सिंह

    अच्छा है कविता!!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    pure optimizm !! wonderful.

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