उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 42)
38. स्वधर्म स्थापना हेतु शील बलिदान
आहट सुनकर देवलदेवी शय्या से उठकर खड़ी हो गई। कक्ष में शहजादा खिज्र खाँ आ चुका था मदिरा के अत्यधिक सेवन के प्रभाव से लड़खड़ाते कदम, अफीम के असर से लाल होती आँखें, स्याह होंठ। शहजादे को देखकर देवलदेवी को उबकाई आ गई, पर उन्होंने स्वयं पर नियंत्रण रखते हुए कहा, ”आइए शहजादे आलम, दासी कब से आपकी प्रतीक्षा कर रही है।“
राजकुमारी जानती थी कि आज उन्हें स्वधर्म की स्थापना हेतु प्रज्ज्वलित यज्ञ वेदी में अपने देह की आहुति देनी है। एक अपहृतकर्ता के साथ प्रेम प्रदर्शन करना है। एक म्लेच्छ से अपने स्वर्णिम देह की विडंबना करवानी है। धर्म भ्रष्ट करने वाले के साथ शय्या सहवास करना है। नियति के हाथों विवश थी राजकुमारी पर वे जानती थी इसी नियति को उन्हें सुअवसर में परिवर्तित करके प्रतिशोध लेना था।
राजकुमारी की बात सुनकर शहजादा सम्मोहित-सा आगे बढ़ा। राजकुमारी के गुलाबी अधरों पर उसे देखकर कृत्रिम मुस्कान उभरी। उनकी रूपराशि, देहराशि को देख, शहजादा ठगा-सा रह गया। शहजादे को इस वक्त राजकुमारी नख से शिख तक हुस्न का बुत लग रही थी। देवलदेवी के रतनारे नयन और उन पर बिना डोरी के कमान सी भौंहे तथा कपोलों पर खेलते केशों की लटें, होठों की लालिमा, सुंदर ग्रीवा, पुष्ट यौवन उभार, पतली कमर, नितंबों की सुडौलता, थरथराती जांघें और काँपती पिडलियाँ। कामुक शहजादा उस गुर्जर कन्या की देहराशि देख और अधिक कामुक हो उठा।
शहजादे खिज्र खाँ ने आगे बढ़कर राजकुमारी को अपनी बाँहों में भर लिया और उनके उज्जवल कपोलों पर उसने अपने स्याह होंठ रख दिए। राजकुमारी ने घृणा से आँखें बंद कर लीं पर उन्होंने कोई अवरोध उत्पन्न नहीं किया। शहजादे पर कामुकता सवारी करने लगी, उसने देवलदेवी को अपने सीने से भींचकर उनके कोमल हाथ और नाजुक अंगों का मर्दन करने लगा। देवलदेवी भी आँखें मूंदे इस नारकीय पीड़ा को सहन करती रही।
कामक्रीड़ा से अनभिज्ञ होते हुए भी देवलदेवी अपनी उंगुलियों से शहजादे के सिर को सहलाकर पे्रम प्रदर्शन करने लगी। उन्हें समर्पित जान खिज्र खाँ का यौवन उनको निगलने का प्रयत्न करने लगा। सहसा देवलदेवी के कपोलों और अधरों पर चुंबनों की तेज बौछार होने लगी। उनके अंगों का मर्दन करते हुए खिज्र खाँ जब उत्तेजना के शिखर पर पहुँचा तो देवलदेवी ने धीरे से कहा ”शहजादे आलम, आज रात्रि क्या इतना पर्याप्त नहीं है।“
उनकी बात अब कामुक शहजादे के सुनने के वश के बाहर थी। राजकुमारी के कंपित होंठों पर वह अपने मदिरा से फफकते होंठ रखते हुए उनके कोमल अंग को निगलने लगा। राजकुमारी को यूँ लगा जैसे उनके शरीर में जहर बुझा खंजर उतार दिया गया हो। उन्होंने अपने पवित्र शरीर की देश और धर्म की रक्षा के लिए प्रज्ज्वलित यज्ञ में आहुति दे दी। उनके देह के इस बलिदान पर वहाँ अश्रु बहाने वाला कोई न था सिवा उनके। उनके इस बलिदान पर उनकी आँखें स्वतः रो पड़ी। राजकुमारी के कपोलों पर ढुलकते अश्रु के मोती देखकर शहजादा और कामुक हो उठा और राजकुमारी ने आँखें बंद किए हुए अपनी देह को ढीला छोड़ दिया।