लेख

धर्म – मानवीय रिस्तो और प्रेम का शत्रु

धर्म ने संसार को क्षणिक , मिथ्या, नाशवान , माया माना है, रिश्ते नाते को झूठा बता के आपसी प्रेम को पनपने से रोका है , धर्म आपसी प्रेम को स्वीकार नहीं करता बल्कि वो सभी नाते रिस्तो को “झूठा” करार देता है , भाई-बहन, माँ-बाप , दोस्त बंधू आदि सभी रिस्तो से प्रेम को परमात्मा से बिमुख होना बताता है ।

धर्म हमें शिक्षा देता है की माँ -बाप , भाई बहन , सगे सम्बन्धी कोई अपना नहीं होता । होता है तो सिर्फ काल्पनिक इश्वर ,इश्वर की अंध भक्ति ही जीवन का धेय होता है।

धर्म ने संसार को क्षणिक , मिथ्या, नाशवान , माया माना है, रिश्ते नाते को झूठा बता के आपसी प्रेम को पनपने से रोका है , धर्म आपसी प्रेम को स्वीकार नहीं करता बल्कि वो सभी नाते रिस्तो को “झूठा” करार देता है , भाई-बहन, माँ-बाप , दोस्त बंधू आदि सभी रिस्तो से प्रेम को परमात्मा से बिमुख होना बताता है ।
धर्म हमें शिक्षा देता है की माँ -बाप , भाई -बहन , पति पत्नी आदि कोई अपना नहीं होता , जो अपना होता है वो है केवल “काल्पनिक ईश्वर “. इसके अलाव सब रिश्ते नाते बेकार हैं । इसलिए यदि प्रेम करो तो केवल इश्वर से , इश्वर के प्रति अंधभक्ति ही धर्म का सबसे बड़ा धेय होता है ।

देखिये धर्म क्या कहता है –
जाके प्रिय न राम वैदेही ।
ताजिय ताहि कोटि वैरी सम , जधपी परम स्नेही ॥
अर्थात – जिसे राम और सीता प्रिय नहीं हों उसे करोडो वैरियों के समान समझना चाहिए फिर चाहे हो कितना भी प्रिय क्यों न हों ।

इसी तरह लगभग हर मजहब सिर्फ अपने इश्वर को प्रेम करना ही सिखाता है।
तो बताईये , आपसी रिश्ते कैसे मजबूत होंगे ? कैसे इन्सान इन्सान से प्रेम करना सीखेगा क्यों की हो सकता है की दूसरा व्यक्ति राम या सीता को न मानता हो , तो क्या इससे बंधुत्व की भावना पैदा होगी ? नहीं ! हरगिज नहीं । तो इस तरह से धर्म के बहुत बड़ी रूकावट रहा है आपसी प्रेम बढ़ाने में ।

धर्म शाश्वत मूल्यों की बात करता है और नैतिकता समाज और व्यक्ति की आवश्यकता अनुसार और सुविधा अनुसार बदलती है , धर्म के आदर्श अप्रत्यक्ष और कृत्रिम तरीको से व्यक्ति और समाज को प्रभावित करते हैं जबकि नैतिकता आचरण की वस्तु है। धर्म और नैतिकता का ये अंतर एक महत्वपूर्ण और बुनियादी अंतर है जिसको गलत व्याख्या करके , नैतिकता को धर्म की उपज बता के , नैतिकता और धर्म को एक बता के धर्मगुरुओं ने हमेशा जनमानस को भर्मित किया है।

यही कारण है की समाज के विकास के प्रयत्नों का धर्म ने हर बार विरोध किया है , धर्म ने सती प्रथा के विरोध में हुए आंदोलनों का विरोध किया है , विधवा विवाह का विरोध किया है ,प्रेमविवाह का विरोध किया है , छुआ छूत मिटाने के अन्दोलनो का विरोध किया है , परिवार नियोजन का विरोध किया है , पर्दा प्रथा( बुरका ) को जीवित रखने का पुरजोर प्रयास किया है , वैज्ञानिक अनुसंधानो और अविष्कारों का विरोध किया है , यानि हर उस चीज का विरोध धर्म ने किया है जिससे मानव जाती का कल्याण हो सके । और आज भी कर रहा है ।

धार्मिक मतवाद को लेके हमेशा से जिस प्रकार विभिन्न धर्मो में आपसी घृणा और इर्षा रही है उसे ये दुनिया धार्मिक गुटों का एक अखाडा बन गयी है , यूरोप में इसाई और मुसलमानों का टकराव ,शिया -सुन्नी हिंसा , ईसाईयों में आपसी टकराव , हिन्दुओं में आपसी टकराव , मुसलमानों और हिन्दुओं में टकराव अदि , यानि संसार का कोई भी ऐसा कोना नहीं है जिसमें धर्म के नाम पर टकराव न हुआ हो और रक्तपात न हुआ हो ।

आदमी की दुनिया जिस ढंग से चल रही है जिस तरह से कालांतर से शोषण , अन्याय , मारकाट , अव्यवस्था आदि का बोलबाला समाज में रहा है और है, उसे देख कर विश्वास नहीं होता की इश्वर नाम की कोई अतिमानवीय सत्ता कंही है जो पूजा के काबिल हो ।

अगर ऐसी कोई सत्ता है तो फिर उसके सत्ता चलने के ढंग से उसे सिरफिरा और चाटुकारिता पसंद ही कहा जा सकता है जिसे “चढ़ावा ” पसंद हो , सातवे आसमान पर सभी सुखसुविधाओं से परिपूर्ण जीवन बिता रहा हो , जिसने अपनी सत्ता का ठेका धार्मिक गुरूओं को दे रखा हो हो और ये धार्मिक गुरु अपनी मर्जी से उसे चला रहे हों ।

और अंत में
बुत खानों ,इबादत खानों में जो जा के सर नवाते हैं,
वे ही निरीह इन्सनों पर आग बरसते हैं ,
ये जो भूखे रहते हैं महीने भर ,
या छानछान पिया करते हैं पानी तक,
पत्थरो पर दूध की नदियां बहाते हैं ,
अकसर बिना छाने इंसानी लहू पी जाते हैं,

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

2 thoughts on “धर्म – मानवीय रिस्तो और प्रेम का शत्रु

  • विजय कुमार सिंघल

    यह सत्य नहीं है कि धर्म मानवीय संबंधों का शत्रु है. वास्तव में धर्म हमको एक पुत्र, भाई,. पिता, सम्बन्धी सभी रूपों में अपने कर्तव्य के पालन का निर्देश देता है. यह अवश्य है कि वह यह भी सिखाता है कि ये सभी रिश्ते क्षणिक हैं और केवल इसी जीवन के लिए हैं. हमारा शाश्वत रिश्ता प्रभु के साथ ही है.
    इस उपदेश में कुछ भी गलत नहीं है. परंतु जो लोग गलत अर्थ लेने पर तुले हुए हैं, जैसे आप, उनको कुछ भी समझाना बेकार है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कड़वी सच्चाई .

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