मुक्तक/दोहा

मुक्तक

मेघ की गिरती ये बूँद , सरगम इक सुना गयी
सोये हुए अरमान में, चिंगारी सुलगा गयी
तेरी यादों में गुम थी, उन फुरसत के पल में,
सूख गये थे जो नासूर, फिर से नम बना गयी ।

रंगो की होती बारिश है, झूमे दिन और रात
भरे कलुषता मन भीतर, करत है मीठी बात
उजला जैसे तन राखे, मन का विष देय त्याग
सब पर जादू कर जाये, दे दे तू सभी को मात ।

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

4 thoughts on “मुक्तक

  • गुंजन अग्रवाल

    dil se shukriya gurmel sir ji

  • गुंजन अग्रवाल

    haardik aabhar vijay bhai

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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