रधिया -एक देवदासी – अंतिम भाग
रधिया ने मिठाई और पकवानो की थाली ली और जमीन पर बैठ गई खाने के लिए , अभी पहला निवाला मुंह तक लाया ही था की न जाने क्या हुआ की वह फफक फफक के रोने लगी। उसकी रोआई सुन के सीमा उसके पास आई और प्यार से सर पर हाथ फेरते हुए बोली ” क्या हुआ रधिया?”।
“मुझे घर की याद आ रही है , मुझे घर जाना है मुझे नहीं रहना यंहा” रधिया ने आंसू भरी आँखों से कहा ।
इस पर सीमा ने बड़े प्यार से उसे समझाते हुए कहा ” देख रधिया तेरा यंहा से अब जाना संभव नहीं है । और फिर तू वापस जा के करेगी भी क्या , तेरे बप्पा बहुत गरीब हैं खाने तक को नहीं हैं उनके पास । सोच, अगर तू यंहा रहेगी तो चार पैसे भेज सकेगी उनको , गितवा भी अच्छा खाना खाएगी अच्छे कपडे पहनेगी । कितना खुश होंगे दोनों । और तू ठहरी छोटी जात की , यह तो तेरा सौभाग्य है की महाराज ने तुझ मंदिर में घुसने दिया और देवता से गाँठ बांधी”।
सीमा के इस प्रकार समझाने से रधिया का मन थोडा हल्का हुआ , उसने खाना खाया और सोने चली गई । पर अब भी उसके दिमाग में अपना गाँव,घर बहन पिता ही घूम रहे थे । फिर न जाने कब यूँ ही नींद आ गई।
इस तरह से 8-10 दिन बीत गए , रधिया रोज सुबह उठ के मंदिर की साफ सफाई आदि कामो में हाथ बंटाती , शाम को थक के खाना खा के सो जाती। कई बार ऐसा भी होता था जब रधिया मंदिर के गर्भ गृह में जाती सफाई के लिए तो वंहा पहले से मौजूद ‘ महाराज’ जी रधिया को अपने पास बुलाते आशीर्वाद देने के लिए ,और उस दौरान उसके शरीर के अंगो को कई कई बार अपने हाथ से सहलते।
रधिया को यह सब बड़ा अजीब लगता , उसका गर्भ गृह में जाके सफाई करने का मन नहीं करता पर महाराज के चेलो के आगे उसकी एक न चलती । वे जबरन भी उसे सफाई के लिए भेज देते ।
इधर संपत बीच बीच में रधिया के कमरे में आ जाता और उससे मजाक करता, कभी कभी तो वह सीमा के सामने ही रधिया का हाथ पकड़ लेता और गालो और कमर पर हाथ फेरने लगता।
रधिया इन सबका विरोध करती तो संपत और ठिठाई से हँसने लग जाता,रधिया सीमा से सारी बात कहती तो वह भी असमर्थता जाता देती। रधिया ने कई बार सोचा की वंहा से भाग जाए पर के चारो ओर ऊँची ऊँची दीवारे थी और मुख्य दरवाजे दो सुरक्षाकर्मी हमेशा तैनात रहते ।
एक रात रधिया अपने कमरे में सोई थी ,कोई आधी रात से थोडा अधिक समय रहा होगा । अचानक रधिया की नींद खुल गई और वह चौक के उठ गई, उसे लगा की कोई बिस्तर पर है । आँखे खोलने पर उसने देखा की महाराज जी उसके बिस्तर पर बैठे हैं और उसके शरीर पर हाथ फेर रहे हैं । उनकी आँखे अंगारे की तरह सुर्ख लाल थी ऐसा लग रहा था की कोई नशा किया हुआ है । रधिया ने डर और आस्चर्य मिश्रित आवाज में कहा ‘ महाराज जी आप?”
“हाँ रधिया, मैं हूँ तेरा विवाह हुए इतने दिन बीत गए और अभी तक तेरी सुहागरात भी नहीं मनी, देवता कितने नाराज है तुझे पता है ?”- महाराज ने अपने कपडे उतारते हुए कहा ।
रधिया मारे डर के कापने लगी उसने आस पास सीमा को देखा पर सीमा नहीं थी , कमरा अन्दर से बंद था । रधिया कुछ बोल पाती की इतने में महाराज ने उसे दबोच लिया । कुछ ही क्षण में रधिया निवस्त्र थी , वह चीख रही थी पर उसकी आवाज सुनने वाला उस समय कोई नहीं था । थोड़ी देर में सुबह होने वाली थी , इस बीच रधिया को महाराज ने कितनी बार रौंधा यह उसे भी याद नहीं । अब महाराज कमरे से बहार जा चूका था रधिया को अर्धमूर्छित अवस्था में छोड़ के ,उसके शरीर के अंदरूनी अंगो और कई जगह खरोच और घाव के निशान सारी रात हुए उसके साथ हुए बर्बरता की कहानी कह रहे थे ।
कुछ देर बाद सीमा कमरे में आई और रधिया को होश में लाने के बाद उसके घावो पर मरहम लगया । तेज दर्द के मारे रधिया का बुरा हाल था उसने सीमा को रोते हुए सारी बात बताइए । सीमा ने ठंढी आवाज में कहा ” मुझे सब पता है रधिया , तुझे बताने की जरुरत नहीं . बस तू इतना समझ ले की रोने से कुछ नहीं होने वाला धीरे धीरे सब आदत पड़ जाएगी . मैं तेरे लिए गर्म दूध लाती हूँ”।
इतना कह के सीमा दूध लेने चली गई , रधिया दर्द से रोये जा रही थी ।
दो दिन बीत गए, अभी रधिया अपने साथ हुए बलात्कार के सदमें से उबर नहीं पाई थी की फिर एक रात संपत उसके कमरे में आ धमका। एक बार फिर रधिया के साथ हैवानियत का खेल खेला जाने लगा पर उसकी चीखे सन्नाटे और संपत की हवस में दब के रह गई ।
इस तरह से अब रधिया के साथ लगभग हर दुसरे तीसरे दिन कोई न कोई आ के उसके शरीर के साथ खेल के चला जाता, अब तो अनजान लोग भी आने लगे थे । रधिया रोती , चीखती पर सब बेकार जाता ।
तीन महीने बाद सीमा को रधिया का पेट कुछ उभरा सा लगा उसने जब रधिया से पूछा तो उसने इसके बारे में अनभिज्ञता जाहिर की। सीमा समझ गई की रधिया गर्भवती हो चुकी है । उसने यह बात तुरंत महाराज को बताई, महाराज ने सीमा से कहा की यह बात किसी को पता नहीं चलना चाहिए और तुरंत संपत को बुलावा भेज दिया । लगभग एक घंटे बाद संपत एक डाक्टर के साथ रधिया के कमरे में था , सीमा पहले से ही वंहा मौजूद थी। डाक्टर ने अच्छी प्रकार रधिया का निरिक्षण करने के बाद कमरे से बहार आ गया साथ में संपत और सीमा भी बहार आ गए । डाक्टर ने संपत से कहा की अब बहुत देर हो गई है ,लड़की का गर्भपात नहीं करवाया जा सकता और फिर इसकी उम्र कम है यदि गर्भपात करवाया भी तो जान का खतरा है इस लड़की के लिए।
डाक्टर की बात सुन के दोनों सन्न रह गए , डाक्टर के जाने के बाद संपत ने सीमा से कहा की तुम इसका ध्यान रखना यह बहार न जाने पाए , महाराज जी अभी जजमानी में गए हैं शाम को आयेंगे तो उन्हें सारी समस्या बताएँगे , देखते हैं क्या कहते हैं वे।
रात के तक़रीबन 11 बजे होंगे , रधिया बिस्तर पर लेटी हुई थी पर देखने में ऐसा लग रहा था की सो गई है, सीमा जगी हुई थी। महाराज संपत के साथ कमरे में प्रवेश किया और धीरे से सीमा से पूछा की रधिया सो गई क्या? सीमा ने रधिया की तरफ देखते हुए कहा ” सो गई है” । महाराज ने गुस्से में सीमा से कहा की” रधिया गर्भवती भी हो गई और तुझे पता भी न चला’
सीमा ने डरते हुए कहा ” महाराज मैं इस तरफ ध्यान नहीं दे पाई मुझे क्षमा करें”
रधिया चुप चाप उनकी बाते सुने जा रही थी ।
” अब इसका हल क्या होगा? यदि लोगो को पता चल जायेगा तो बहुत बदनामी होगी , पुलिस केस भी हो सकता है” महाराज ने गंभीर मुद्रा में कहा ।
संपत ने कहा की ” महाराज आप फ़िक्र न करें इसका इलाज भी करते हैं, अपनी पुरानी चेली कमला कब काम आएगी? उसी के यंहा छोड़ आते हैं इसे वह इसका गर्भपात करवा देगी । अगर यह मर जाएगी तब भी किसी को पता नहीं चलेगा और जिन्दा रही तो उसके काम आएगी ,वह भी खुश हो जाएगी ।
कमला का नाम सुनते ही महाराज के चेहरे पर कुटिल मुस्कान आ गई उसने खुश होते हुए कहा ” वाह ! संपत तूने बहुत बढ़िया उपाय बताया । जिन्दा रही तो कमला के ग्राहकों को खुश रखेगी और मर गई तो हमारे पर कोई आंच नहीं आएगी । बहुत अच्छा कल रात मे ही तुम कमला के पास निकल लेना सुबह तक वापस भी आ जाओगे . और अपने साथ सीमा को भी लेजाना ताकि कंही भागे न यह लड़की।
इतना कह के संपत और महाराज दोनों कमरे से बाहर निकल गए।
रधिया ने सबकुछ सुन लिया था उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे पर वह खामोश सोने का नाटक करती रही ।कमला का कोठा शहर में था तकरीबन दो घंटे का समय की दूरी पर ।
अगले दिन रधिया खामोश थी , उसने किसी से बात नहीं की सीमा से भी नहीं और न ही खाना खाया न ही कमरे से बहार निकली। रात में तय समय पर संपत कमरे मेब आया उसने सीमा को इशारा किया , सीमा ने रधिया से कहा की वह तैयार हो जाये कुछ कपडे रख ले उसे शहर इलाज के लिए जाना है । रधिया चुप चाप जैसा सीमा कह रही थी वैसा करती जा रही थी । थोड़ी में वे तीनो कार में बैठे मंदिर परिसर से दूर थे, कार संपत चला रहा था और सीमा और रधिया पीछे बैठे थे ।
रधिया कार की खिड़की से बाहर झांके जा रही थी , कई दिनों बाद आज उसे खुले आसमान के दर्शन हो रहे थे ।
सड़क रेलवे स्टेशन के पास से गुजरती थी , रेल की पटरियां सड़क के साथ साथ चल रही थी। एक रेलगाड़ी स्टेशन पर खड़ी थी जो शहर कीतरफ ही जा रही थी ।
रधिया अब भी बाहर झांके जा रही थी , कार स्टेशन को पीछे छोडती हुई आगे निकल गई । अभी आधा सफ़र ही तय किया था की रधिया ने सीमा से कहा की उसके पेट में दर्द हो रहा है और उसे टॉयलेट जाना है । संपत ने कार रोक ली ,सीमा और रधिया दोनों उतर गए । संपत कार में ही बैठे बैठे बोला ‘ जा जल्दी से वापस आ “।
रधिया कार से थोड़ी दूर रेल की पटरी के पास आके बैठ गई , सीमा उसे कुछ दूर खड़ी थी । दूर रेलगाड़ी की आवाज सुनाई देने लगी थी , आवाज पास और पास आने लगी थी। रधिया अब भी उसी मुद्रा में बैठी थी सीमा दूर खड़ी थी, कुछ ही मिनटों में रेलगाड़ी सामने से आती हुई दिखाई दी । अचानक रधिया की आँखों में चमक आ गई उसने एक बार सीमा की तरफ देखा सीमा की नज़ारे उसकी नजरो से मिली कुछ इशारा हुआ की अचानक रधिया उठ के आती हुई रेलगाड़ी की तरफ भागने लगी । सीमा ने उसे थोड़ी दूर जाने दिया फिर जोर जोर से आवाज लगानी शुरू कर दी ।
संपत भी कार से उतर के आवाज की तरफ दौड़ने लगा उसने देखा की रधिया पटरी पर रेलगाड़ी की तरफ दौड़ी चली जा रही थी । वह उसके पीछे भागा पर तब तक देर हो चुकी थी ….. रधिया रेलगाड़ी से टकरा चुकी थी , हवा में उसके टुकड़े बिखर गए थे ।
रधिया मुक्त हो चुकी थी..सीमा और संपत वंही जड़ खड़े हुए थे ।
थोड़ी देर बाद उन्हें होश आया तो वे कार लेके तुरंत मंदिर की तरफ दौड़ लिए।
कुछ दिनों बाद संपत फिर रधिया के गाँव में था , गितवा को लेने के लिए ।
हालाँकि देवदासी प्रथा अब समाप्त हो गयी है, पर कहानी बहुत मार्मिक और दुखद है।
दरदनाक कहानी .