मुक्तक
मेघ की गिरती ये बूँद , सरगम इक सुना गयी
सोये हुए अरमान में, चिंगारी सुलगा गयी
तेरी यादों में गुम थी, उन फुरसत के पल में,
सूख गये थे जो नासूर, फिर से नम बना गयी ।
रंगो की होती बारिश है, झूमे दिन और रात
भरे कलुषता मन भीतर, करत है मीठी बात
उजला जैसे तन राखे, मन का विष देय त्याग
सब पर जादू कर जाये, दे दे तू सभी को मात ।
dil se shukriya gurmel sir ji
haardik aabhar vijay bhai
वाह !
बहुत खूब .