सुबह-सुबह
साम गई रात गई हुआ सुबह में सुप्रभात।
खाट को छोड़ उठ गये खुद अपने आप।
बाहर निकलकर किये दिन का शुरूआत।
सूर्य कि किरणों ने की स्वागत का आगाज।
पूरब दिशा से चारो ओर लालिमा का प्रसार,
लालिमा देखते ही बन गया चतुर्दिश आकार,
चिड़ियो ने आवाज़ लगाई एक साथ मिलकर
पंछी अपने पंखुड़ियों को लगे करने विस्तार
वृक्ष ने टहनी हिलाकर सहर्ष किया स्वीकार,
पौधों ने शिश हिलाकर नहीं किया इनकार,
फुलो की कलिया हो गयी आपस में गद- गद,
खोलने लगी सब अपने कोड़ो का सब द्वार।।
सभी दरवाजों से निकला एक एैसी सुगन्ध।
दूर हो गईं सब लोगों के अन्दर की दुर्गंध
सभी जीव जन्तु स्वच्छता का हो गये प्रतिक।
प्रकृति के वातावरण में ले रहे थे सब उमंग ।
सुन्दर वर्णन किये हैं श्रीमान जी।
बहुत ख़ूब !
धन्यवाद श्रीमान जी।