कविता

कविता– सतरंगी छटा

खिलेंगे फूल कभी
अपनी भी बगिया में
बिखरेंगी खुशबू
बनकर सुखद एहसास
निकलेगी धूप भी
धून्ध से छँटकर एक दिन
खिल उठेंगे ,
सिले सिले दिन भी कभी
रिश्तों की सूखी बगिया में
जब आएंगी मंजर
बहार के …..
घर -आँगन के मुंडेर पर
चहकेंगे पक्षियों का झुंड भी
और साथ ही ,,
निखर जाएगी सतरंगी छटा
इंद्रधनुष का …….
कट जाएगी यूं ही
ज़िंदगी मेरी ,
मौसम के भयावह तूफान से
मिल जाएगी मंजिल
हौसलों की ऊंची उड़ान से
और छू लेंगे हम भी कभी
सतरंगी आसमान को ……!

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

One thought on “कविता– सतरंगी छटा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता.

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