कविता– ‘तुम्हारी याद’
एक मौन,
जो समाया है मेरे अंतर्मन में
यूं ही कभी चित्कारता है और
तुम्हारे आसपास होने की साजिश करता है
तुमसे बातें करने के बहाने ढूँढता है
तुम्हारी यादों को खुद में समाने की ,
पुरजोर कोशिश करता है ……
पर दुर्भाग्य का खेल देखो ,,
तुम्हारे आसपास जो अनगिनत
जाल से बने हैं
मुझे रोक लेते हैं तुम्हारे पास होने से ……
तुम्हारे शब्दों को मूक बांध लिए हैं
अपने सुखद एहसासों में,
और साथ ही तुम्हारी यादों में
जमाय बैठे हैं खुद का डेरा …..
अब तुम्हीं बताओ कितना मुश्किल है
यूं तुमसे मिलना ,
बातें करना और तुम्हें अपनी
यादों में बसाना …….
पर,,अडिग है मेरा प्यार जो न कभी
सहमा है , रूका है और न ही थका है
हाँ ,,एक सत्य जरूर है तुम्हारी
रूसवाइयों से थोड़ा डरता है …….!
वाह वाह !