– खुशामद जो जीवन भर ना सीख पायें –
खुशामद ना कियें कभी भी
और ना ही कर पायें अभी
जब देखो तब हम
सभी से अकड़ते आयें..
मात-पिता ने समझाया बहुत
झुकना सीखो थोड़ा हो लड़की जात
पर जैसे अपने खून में ही ना था
और ना थी अपने बस की यह बात …
धीरे-धीरे बड़े होते गये
भाइयों के साथ ही खड़े होते गये
कभी नहीं की भाइयों की चापलूसी
ना ही मक्खन पालिस कभी भाभी की….
विधालय में भी आकर नहीं आया यह गुण
सहेलियों की चमचागिरी देख करती भुनभुन
टीचरों को भी नहीं लगाया कभी मक्खन
गलत बात नहीं कोई कभी किया सहन …
हर गलत बात पर झट कर बैठती दंगा
प्रिंसिपल से भी ले लिया करती पंगा
पता नहीं क्या सोचती होगी टीचर भी
शायद कहती हो हैं बहुत नकचढ़ी यह लड़की….
सास ने भी बहुत ही सिखाया
एक अच्छी कहावत भी याद दिलाया
दुधारू गाय की लात भी हैं सहते
सह लिया करो कोई कुछ है यदि कहतें …
पर अपने सर पर तो अकड़ ही छायी
कभी भी ना कर सकी किसी की झूठी बड़ाई
अपने बच्चे भी जब नहीं पीतें थे दूध
जाते थे चिड़चिड़ा कर गोदी से कूद
समझातीं तब सास थोड़ा चापलूसी कर भटकाओ
फिर बहलाफुसला के दूध तुम उन्हें पिलाओं ….
तब भी हम ना समझे इस गुण के महत्व को
रुला-रुला पिलातें थे किसी तरह दूध उनको …
क्या बताएं कैसे-कैसे पड़ाव है जीवन में बहुतेरे आयें
कई बार इस खुशामद के बिना हम बहुत कुछ झेल जाये||.
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खुशामद एक आर्ट है जो हर कोई नहीं कर सकता .
बढ़िया ! खुशामद ही से आमद है, बड़ी इसलिए खुशामद है !