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आखिर हम कहाँ जाएँ?

जब कांग्रेस यानी यु पी ए -२ का भ्रष्टाचार सर चढ़कर बोलने लगा और भरतीय जनता को मोदी नीत भाजपा से आशा बंधी, भारतीय जनमानस ने उन्हें अभूतपूर्व बहुमत दिया. केंद्र के साथ कई राज्यों में भी सत्ता सौंपी. मोदी जी देश-विदेश में अपनी जीत का डंका बजाते रहे, भारतीयों को आशा बंधाते रहे कि अब अच्छे दिन आ गए हैं. अच्छे दिन का मतलब आम जनता मानती है- महंगाई से निजात, भ्रष्टाचार पर रोक, महिलाओं के साथ-साथ आम आदमी की सुरक्षा, सुविधा और अनुकूल वातावरण. युवकों की नौकरी, मूलभूत सुविधाओं में इजाफा, सड़क, बिजली, पानी, सफाई और स्वस्थ माहौल. शिक्षा और चिकित्सा के साथ सीमाओं की सुरक्षा, भयमुक्त भाईचारे का वातावरण. मोदी जी ने काफी कुछ करने का प्रयास किया है पर जनता की आकांक्षाएं बड़ी होती है. जितनी सुविधा मिलती है और अधिक चाहता है और जल्द चाहता है. मोदी जी ने कुछ वादे ही ऐसे किये थे – सौ दिन में काला धन …पर नौ महीने में कोई ख़ास प्रगति न देख जनता का मोदी सरकार से धीरे-धीरे मोहभंग होने लगा. दिल्ली में लगभग एक साल से चुनी हुई सरकार नही थी. राष्ट्रपति शासन के दौरान सरकार बनाने की कोशिश भाजपा भी करती रही और बकौल आम आदमी पार्टी उसे रोकने के लिए वह भी कांग्रेस और उनके विधायकों से संपर्क बनाती रही. दोनों में कोई सफल नहीं हुए अंतत: दिल्ली राज्य में भी चुनाव की घोषणा हुई. कई राज्यों में अपनी जीत से भरमाई भाजपा को दिल्ली की जनता पर भी भरोसा था. मोदी जी ने तो कहा भी था – जो देश का मूड है वही दिल्ली का मूड है ….. पर दिल्ली की जनता ने भाजपा को ही नहीं मोदी जी और अमित शाह की कूटनीति और क्रिया-कलाप पर बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न लगा दिया.
उधर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं और केजरीवाल को भरपूर समय मिल गया, अपना प्रचार-प्रसार करने को. उसने भी खूब वादे किये और घर घर जाकर मध्यम और निम्न वर्ग को समझाया, दिल्ली में जल्द चुनाव न करने के लिए कांग्रेस और भाजपा सरकार को जिम्मेदार भी बताया, साथ ही जहाँ जरूरत समझी माफी भी माँगी, थप्पड़ भी खाया, कालिख भी लगवाया; फिर भी सबको गले लगाया. परिणाम दिल्ली की जनता ने भी अपना फैसला सुनाया ७० में ६७ सीटें देकर…. एक इतिहास बनाया. अब पांच साल इसे कौन हटा सकता है पर सभी लोग तो नि:स्वार्थी नहीं हो सकते न! सारा श्रेय एक आदमी ले जाए, ऐसा कैसे हो सकता है, सबने मिहनत की है, सबने अपना अपना योगदान किया है सबको यथोचित पुरस्कार/भागीदारी मिलनी चाहिए …मन में असंतोष उपजा और मीडिया भी चटखारे लेकर एक-एक मुद्दे को तूल देने लगी. आप का क्या होगा? जो घर नहीं सम्हाल सकते वे दिल्ली और देश कैसे सम्हाल सकते हैं….इधर इतना हंगामा चल रहा है और उधर केजरीवाल अज्ञातवास में अपना इलाज करा रहे हैं. मीडिया क्या किसी से बात करने की भी इजाजत नहीं है. उधर उनका स्वास्थ्य ठीक हो रहा है, इधर हल्ला गुल्ला भी शांत हो रहा है. आखिर एक ही बात, एक ही ‘स्टिंग’ कितनी बार लोग देखेगा और सुनेगा और भी बहुत काम है लोगों को. उधर भूमि अधिग्रहण बिल है जिसे राज्य सभा में पास कराना है, बीमा बिल तो कांग्रेस की मदद से पास हो गया है. आखिर मनमोहन सिंह को भी तो कोर्ट जाने से बचाना है. कितनी बदनामी हो रही है, कांग्रेस के मनमोहन सिंह की. उससे अच्छा है कि भूमि अधिग्रहण बिल भी पास हो जाय और मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी की बची-खुची इज्जत बची रह जाय. राहुल गांधी भी अज्ञातवास से बाहर निकल आएं.
मुझे लगता है मीडिया, सोसल मीडिया, आम आदमी को कुछ कुछ मसाला मिलता रहना चाहिए. अधिकाँश लोग तो वर्ल्ड कप का मैच देखने में ही ब्यस्त हैं … कोई बॉल तो कोई बैट की चर्चा में मशगूल है भारत लगातार मैच जीत रहा है इधर मीडिया स्टिंग की खबरें, खाली पेन ड्राइव दिखा रहा है. उधर मोदी जी जब श्रीलंका से वापस आएंगे तो अपना अनुभव और मन की बात किसानों को सुनाएंगे. वैसे सुनेगा तो पूरा देश ही ..तब तक केजरीवाल बेंगलुरु के नेचरोपैथी सेंटर से अन्ताक्षरी खेलकर वापस आ ही जायेंगे. तबतक कुमार बिश्वास लक्ष्मण की तरह बल्ला सम्हाले हुए हैं. मुझे लगता है कुमार बिश्वास को ही प्रवक्ता पद दे देना चाहिए .योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण, शांति भूषण आदि को सलाहकार/मार्गदर्शक-मंडल में जगह बनाने की आदत डाल लेनी चाहिए और अपना मत पत्र के माध्यम से व्यक्त करते रहें या ब्लॉग लिखते रहें…आडवाणी जी भी तो पत्र लिखते-लिखते ब्लॉग पर आ गए हैं इधर भाजपा की प्रखर प्रवक्ता मिनाक्षी लेखी भी ब्लॉग लिखने लगी है. ब्लॉग लिखना अच्छा भी है बहुत सारे लोग पढ़ लेते हैं, सारे लोग अगर नहीं भी पढ़ते हैं, तो मीडिया उसका मुख्य हिस्सा पढ़ा देती है.
संचार माध्यमों से एक फायदा तो सबको हुआ है आप अगर सपने में भी कुछ सोचते है तो वह भी प्रकाश में आ जाता है. क्या पता कौन सपने में भी आपके दिमाग में कोई चिप्स फिट कर दे और वह भी स्टिंग का हिस्सा बन जाए.
एक महीना हो चुका है, आम आदमी पार्टी अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करनेवाली है. तबतक मीडिया में सर्वे आ गए हैं. पार्टी की बदनामी हुई है जरूर, लेकिन केजरीवाल की लोकप्रियता अभी भी मोदी जी से ज्यादा है, कम से कम दिल्ली में.
इधर नीतीश बाबु एक दिन का उपवास रखकर भूमि अधिग्रहण बिल पर विरोध दर्ज करा चुके हैं. किसानों का वोट उन्हें तो चाहिए ही. जीतन राम मांझी बेचारे उधेड़ बन में हैं इधर जाएँ या उधर घर वापसी या प्रवासी बनें. अपने घर में रहकर कुछ दिन के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बनकर काफी लोकप्रियत हासिल कर ली प्रवासी बनकर मुख्यमंत्री बन पाएंगे – संदेह के घेरे में हैं. भाजपा भी किरण बेदी का हस्र देख चुकी है अब क्या बिहार में भी वैसा रिश्क लेगी? फिर सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव आदि क्या करेंगे.
वैसे क्रिकेट मैच में जितना मजा नहीं होता उससे ज्यादा मजा मुझे उसकी चर्चा में लगता है. क्रिकेट खेल के बारे में कुछ भी नहीं समझनेवाला आदमी अपनी राय जाहिर तो कर ही देता है ऐसा होता तो वैसा हो जाता… आदि वर्ल्ड कप भारत जीते यह भला कौन भारतीय नहीं
चाहेगा? इसलिए मैच देखना और उसपर परिचर्चा सुनना ज्यादा जरूरी है. धोनी और उकी टीम को सवा सौ करोड़ भारतीयों का समर्थन चाहिए. मोदी जी भी तो कहते हैं कि हम से जब कोई विदेशी हाथ मिलाता है तो उसे सवा सौ करोड़ हाथ दिखलाई पड़ता है. क्रिकेट के खिलाड़ियों को भी वही सब दिखाने लगा है नहीं तो क्रिकेट का जन्मदाता इंग्लैण्ड बंगला देश से हार जाता? बंगला देश को जन्म देने वाला भी तो भारत ही है न!
१६ तारीख, सोमवार को पापमोघनी एकादशी व्रत है. हमारे हिदू धर्म में बहुत सारे व्रत है जिन्हें अगर श्रद्धा और बिश्वासपूर्वक किया जाय तो हमारे सारे पाप धुल जाते हैं और हम अपने अभीष्ट को प्राप्त करने में सफलता हाशिल कर लेते हैं. ईश्वर का ध्यान कर अगर सद्कर्म किया जाय तो फल अवश्य मिलता है. वैसे भी ‘कर्मप्रधान विश्व करी राखा’ का यह देश है. हमें अपना अपना कर्म करना है, फल की चिता नहीं करनी है. फल तो मिलेगा ही आज नहीं तो कल … इसलिए कर्मरत रहिये हर पल! आखिर कहाँ जाइएगा? जाए तो जाए कहाँ …. कांग्रेस भाजपा वाम आवाम या आम! जय श्री राम! जय हिन्द! जय भारत!
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

6 thoughts on “आखिर हम कहाँ जाएँ?

  • जवाहर लाल सिंह

    जी आदरणीय श्याम सनेही जी, आपकी विश्लेष्णात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार!

  • श्याम स्नेही

    अंगेजों ने बहुत बड़ा काम किया है आजादी के बदले लूट के सारे नियम क़ानून संविधान में भारतीयों द्वारा ही डलवा दिए और बाद की सरकारें उसी संविधान को सर्वोपरि मानकर शासन चलाती रही | कोई भी सरकार आये जाए संविधान के दायरे में ही रहकर शासन सत्ता चलानी होगी | इसलिए किसी भी राजनीतिक डल के सरकार से उम्मीद तभी तक करनी चाहिए जब तक सत्ता से दूर है |

  • जवाहर लाल सिंह

    ji adarneey gumel singh ji aap sabhi kaha rahe hain samay to dena hee hoga khaskar jab poorn bahumat kee sarkaar hai to ise poora karne ke liye samay bhi paryapt hai …saadar!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छा लेख है , अक्सर हम कुइक्क रीज़ल्ट चाहते हैं , जो हो नहीं सकता . मोदी जी के पांच साल पूरे होने के बाद ही अचीवमेंट का पता चलेगा . आम पार्टी के झगडे धीरे धीरे डस्ट सैटल हो जायेगी और रीज़ल्ट पांच साल के बाद ही पता चलेगा कि भ्रष्टाचार ख़तम करने में कितने सफल हुए हैं .

  • जवाहर लाल सिंह

    धन्यवाद आदरणीय सिंघल साहब!

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख.

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