जानिए क्यों रहा भारत विज्ञान में फिसड्डी
दोस्तो, यह तो आप जानते ही हैं की भारत वैज्ञानिक रूप से एक पिछड़ा देश रहा है , 98% वैज्ञानिक खोजे और अविष्कार पश्चिमी देशो में हुई है जबकि भारत के धर्म गुरु अपने को ‘ विश्व गुरु’ समझते रहें । धर्म गुरु वेद पुराणों को पकडे रहें और इसको ही ईश्वरीय कह के फुले नहीं समाते रहें ।
वेद पुराणों में दुनिया की सारी वैज्ञानिक बाते भरी पड़ी हैं , ऐसा समझ के वे आत्ममुग्ध होते रहें पर जब हकीकत में आधुनिक विज्ञान से पाला पड़ा तो बगले झांकते नजर आये ।
पर ऐसा भी नहीं ही की भारत में कोई भी वैज्ञानिक सोच नहीं रखता था या आधुनिक खोज करने में पीछे थे । कई ऐसे महान भारतीय थे जो धर्म ग्रंथो के विपरीत आधुनिक विज्ञान की समझ थी । इस विषय में अल -बिरूनी का कथन देखिये –
अल- बिरूनी अपनी पुस्तक ‘ अल बिरूनी का भारत’ में लिखता है –
” गैर यहूदी यूनानियो का भी ईसाई धर्म के उदय के पहले बहुत कुछ ऐसा ही मत था जैसा हिन्दुओ का । उनके शिक्षित वर्गों के भी बहुत कुछ वैसे ही विचार थे जैसे की हिन्दुओ के हैं । उनकी साधारण जनता भी हिन्दुओ की भांति मूर्ति पूजा करती थी । लेकिन यूनानियो में दार्शनिक भी थे जिन्होंने अपने अपने देश में रह कर अंधविश्वास को प्रश्रय नहीं दिया बल्कि उनके लिए विज्ञान के तत्वों का आविष्कार किया , उनका समाधान प्रस्तुत किया । सुकरात की उस स्थिति की कल्पना कीजिये जब उसने अपने ही धर्म के जनसमूह का विरोध किया था और सत्य के प्रति निष्ठां रखते हुए अपनी जान दी थी।
हिन्दुओ में इस प्रकार के लोग नहीं थे जो विविध शास्त्रो में परिपूर्णता लाने में समर्थ और इक्छुक होते। यही कारण है की आपको अधिकत: यह देखने को मिलेगा की तथाकथित वैज्ञानिक प्रमेय ऐसी हो अस्तव्यस्त अवस्था में पड़े हैं । न उनमे कोई तार्किक क्रम है और अंत तक पहुचते पहुचते जान समूह की हास्यास्पद धारणाओ के साथ गड्ड मड्ड हो गए हैं ।
उनके गणित और खगोलशास्त्र से सम्बंधित साहित्य जँहा तक मुझे उनकी जानकारी है ,ठिकरीयो में मिले हुए सीप या गोबर से लिपटे हुए मोती या कंकरियों में पड़े हुए रत्न से की जा सकती है । उनकी दृष्टि में दोनों प्रकार की वस्तुए समान हैं इसलिए वे स्वयं को शुद्ध वैज्ञानिक निगमन की पद्दतियों तक उठाने में असमर्थ हैं ”
अल बिरूनी का साफ़ साफ कहना था की भारतीय विज्ञानं उन्नत है पर वह धर्म के पाखंडो और अंधविस्वास के गोबर में सना हुआ है । अल- बिरूनी यह देख आस्चर्य चकित था की धर्म के कारण वैज्ञनिक खोजो को कूड़े के ढेर में फेंक दिया गया है जिसकी परवाह भारतीय बिलकुल भी नहीं करते ।अल-बिरूनी का यह कथन बिलकुल सत्य था, धर्म की खातिर वैज्ञानिक और उनकी खोजो का उपहास भी उड़ाया गया और उन्हे प्रताणित भी किया गया ।
ऐसे ही एक महान भारतीय वैज्ञानिक हुए आर्यभट्ट , जिन्होंने अंग्रेजो से पहले यह खोज की कि सूर्य पृथ्वी के चक्कर नहीं लगता अपितु पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है ।
उनकी यह खोज ईश्वरकृत धर्म ग्रंथो के खिलाफ थी , धर्म गुरुओं को पोल खुलने का डर सताने लगा था क्यों की उन्होंने जनता को मुर्ख बना के यह कहा हुआ था की पृथ्वी नहीं बल्कि सूर्य पृथ्वी के चक्कर लगता है । पृथ्वी ‘ स्थिर’ है , आर्यभट्ट के इस खोज से वेदों की
सत्ता खतरे में पड़ गई , वेद झूठे साबित हो रहे थे । तब वेदों की सत्ता बनाये रखने के लिए ब्रह्मगुप्त, वरहमिहिर जैसे वेद समर्थको ने आर्यभट्ट पर आक्षेप लगाने शुरू कर दिए , इन्होंने आर्यभट्ट का उपहास उड़ाना शुरू कर दिया ,सिद्धांत शिरोमणि गोलाअध्यय के श्लोक 5 में लिखते हैं की “पृथ्वी के गति होने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता है ”
इस प्रकार कई तरह के प्रपंचो से आर्यभट्ट जैसे वैज्ञानिक को नीचा दिखाया गया और उनकी खोज का उपहास उड़ाया गया क्यों की वे वेदों में लिखे ब्रह्मवाक्यों को चुनौती दे रहे थे ,तभी आज उनकी लिखी ‘आर्यभट्टकरण’ आज अनुपलब्ध है । एक धारणा यह भी है की बाद में आर्यभट्ट को जहर दे दिया गया था। आम भारतीय को आर्यभट्ट का नाम तब पता चला जब सरकार ने उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा वर्ना भारत के आम लोगो ने उनका नाम भी नहीं पता था ।
-केशव