बाल कविता

बाल कविता : बिल्ली मौसी को अप्रैल-फूल बनाया

एक थी

छोटी सी चिड़िया ,

उड़ती रहती

गाँव और शहर की गलियाँ।

एक दिन

देखे उसने

बिखरे दाने बहुत से

दाने चुगने की धुन में

ना देखा उसने

गिरे हैं वो कीचड़ में ,

खाने  के लालच में

पैर भी धँसवाये

पर भी लिए भिगो ,

नन्ही सी चिड़िया

घबराई अब तो

जब देखा सामने

आ रही है बिल्ली मौसी !

बिल्ली मौसी भी हर्षाई

मुख पर जीभ लपलपाई

सोचा ,

“अहा ! आज तो दावत

बिन मेहनत  ही पाई !”

चिड़िया थी तो नन्ही

समझदार भी थी बहुत

बोली मौसी ,

मुझे जरा बाहर निकालो

नहला दो जरा ,

कीचड़ तुम्हारे मुहं में तो

ना जायेगा !

बिल्ली मौसी ,

अभी तो गीली हूँ मैं !

पानी से भरी

तुमको ना भा सकूंगी

जरा सूखने तो दो !

मूर्ख बिल्ली

बैठी इस आस में

चिड़िया सूखेगी

तब खा जाऊँगी उसे

सूख गए पर चिड़िया के  …

फड़फड़ाये उसने अपने पर

जा बैठी ऊँची डाली पर

चहकने लगी हो जैसे

बिल्ली मौसी को अप्रैल -फूल बनाया।

 

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।

One thought on “बाल कविता : बिल्ली मौसी को अप्रैल-फूल बनाया

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी बाल कविता, हालांकि यह एक लोक कथा पर आधारित है.

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