कहानी

लखटकिया सूट

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इस वर्ष की होली का आनंद राजपुर गाँव में अनोखा ही था सभी लोग गाँव के प्रधान गुलाबसिंह की सूझ बूझ का लोहा मान गये थे। लेकिन हर जगह जैसे रात के साथ दिन, सफेद के साथ काला होता है; वैसा ही यहाँ भी रहा। कुछ लोग कैसे ही खुश नहीं होते ।
गुलाब सिंह को इस बात की परवाह भी नहीं थी कि वो हरएक आदमी को खुश रखे । अभी गुलाब सिंह बच्चों को गुजिया बाँट ही रहे थे कि मंगल आ गया और आते ही गले लग गया। और कहने लगा बधाई हो भैया! खूब पैसा मिला सबके दिन बहुर गए ।
गुलाबसिंह – हाँ मंगल, ये सब उस सूट का कमाल है।
तब तक चमेली भी आ गयी और पूंछने लगी, क्या कमाल हो गया ? हम भी तो सुनें! गुलाबसिंह बताने लगे कि कैसे उनका सूट दो करोड़ में बिका और कैसे उन्होने पैसे कि कमी को सर्वजन सुखाय हेतु दूर किया लेकिन पुराना वक़्त याद करके उनकी आँखें भर आई । किस्मत भी क्या क्या खेल दिखाती है? कहाँ कहाँ पहुंचाती है?
मंगल भी याद करने लगा कि दो साल पहले दोनों कोतवाली के चौराहे पर छोटी छोटी दुकान चलाते थे। गुलाब सिंह की चाय की दुकान खूब चलती क्योंकि लोगों को दो पैसे में अच्छी चाए मिल जाती थी। गुलाबसिंह को लालच कभी नहीं रहा। जो मिले उसमें बस अपना गुजारा हो जाय और क्या करना है। ऐसी ईमानदारी की सोच रखने वाले की मदद तो स्वयं ईश्वर ही करता रहता है।
पता नहीं लोगो की दुआओं का नतीजा या ऊपर वाले की इच्छा, कि उन्हें ग्राम प्रधान होने का अवसर प्राप्त हुआ। गाँव का प्रधान पिछले दस साल से मनमानी कर रहा था। कोई बात का सही जवाब नहीं देता। लोगों ने ठाकुर चन्दन सिंह को बड़ी उम्मीदों से चुना था कि बह बहुत पढ़े लिखे समझदार व्यक्ति हैं। गाँव का विकास हो जाएगा। मगर चंदन सिंह की कार्य शैली लोगों को परेशान कर रही थी। पैसा कहाँ जा रहा है? गाँव में कुछ भी सुबिधाएँ दिखाई क्यूँ नहीं दे रहीं हैं ? आखिर प्रधान की व्यवस्था है ही इसलिए कि गाँव का विकास हो सके। मगर ऐसा शायद इसलिए नहीं हो रहा था क्योंकि चन्दन सिंह का लड़का बिगड़ता ही जा रहा था। आए दिन विदेश यात्रा पर। और भी कई बातें थी, जैसे चन्दन सिंह का किसी को जवाब नहीं देना। धीरे धीरे लोगों के मन में चन्दन सिंह के प्रति गुस्सा भर गया और जब ग्राम प्रधान का चुनाव आया तो लोगों ने गुलाब सिंह को चुनाव में उतारा। गुलाब सिंह की ईमानदारी की साख थी। लोगों ने आँख से देखा परखा था कि गुलाब सिंह ने कभी भी चार पैसे दबाने या छुपाने की कोशिश नहीं की। मेहनत में ही भरोसा रखा। जिन लोगों ने गुलाब सिंह को नजदीक से देखा था वो उसकी सूझ बूझ का भी लोहा मानते थे और जिसने देखा नहीं था वो भी देखना चाहते थे कि आखिर ऐसा क्या खास है गुलाब सिंह में?
गुलाब सिंह चुनाव जीत गए और सब की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए, काम करने के लिए जी जान से जुट गए। गाँव की रंगत धीरे धीरे बदलने लगी।गाँव में कई नयी योजनाएँ शुरू करी, बिजली पानी की व्यवस्था दुरुस्त की, ग्राम विकास अधिकारी से मिलकर जो भी उन्नति के लिए किया जा सकता था किया।
लेकिन सबकी खुशी अलग होती है। गुलाब सिंह के जो विरोधी थे उन्हें ये बात बिलकुल हजम नहीं होती। वे किसी न किसी बहाने उनके कामों में कमिया निकालते रहते और उन्हें बदनाम करने की सोचते रहते, लेकिन गुलाब सिंह बे-परवाह अपने भलाई काम में जूटे रहते।
ग्राम विकास के लिया जो पैसा मिल रहा था वह पर्याप्त नहीं था। गुलाब सिंह चाहते थे की गाँव के बच्चों के लिए, गाँव के भीतर ही या नजदीक हीं अच्छा स्कूल हो। साथ ही गाँव वालों के लिए एक बढ़िया चिकित्सालय भी। मगर पैसा कहाँ से आए! तभी, बगल के गाँव सुमेरपुर में गाँव के मुखिया के बेटे की शादी बुलावा आया और गुलाब सिंह ने मंगल को बुला भेजा, समझाया की एक योजना है। अगर वो साथ देगा तो योजना सफल हो जाएगी और गाँव के लिए पैसा भी आ जाएगा।
सज्जन के लड़के के विवाह में जब गुलाबसिंह पहुंचे तो उनकी आन-बान देखकर सबकी आँखें फटी कि फटी रह गई। बिरोधियों को तो देख कर चक्कर आ गया। सबसे खास बात थी गुलाब सिंह का सूट! लोग दूल्हे को कम और गुलाबसिंह को ज्यादा देख रहे थे। कोई कहता सूट पर सोने के तार से कसीदाकारी की गयी है, कोई कुछ, कोई कुछ। तब तक खबर आ पहुंची की गुलाबसिंह ने विवाह के लिए एक लाख का सूट बनबाया अपनी शान दिखाने के लिए। इतनी फिजूलखर्ची, इस चाय बाले की हैसियत तो देखो। है तो चाय वाला ही ,आज दिन बदल गए तो देखो। विरोधियों को बैठे बिठाये संजीवनी मिल गई। बात फैलाई गई कि विकास के लिए जो पैसा आया उसे खुद ही डकार लिया। चारो तरफ ग्राम प्रधान की बुराई होने लगी। यहाँ तक की तमाम टीवी चैनल वाले भी चीखना शुरू कर दिये कि ये व्यक्ति गाँव के विकास के पैसों का गलत उपयोग कर रहा है। बार बार दिखाते वही गुलाब सिंह और वही उनका सूट!
लोग गुलाबसिंह के पीछे पड़ गए। ऐसी बात सुनके गुलाबसिंह को बहुत दुख होता। अंततः उन्होने निर्णय लिया की वो सूट अपने पास रखेंगे ही नहीं। उन्होने निर्णय लिया की सूट की नीलमी करा दी जाये और नीलामी कि रकम को स्कूल व अस्पताल बनाने में खर्च किया जायगा। सूट को नीलामी के लिए लगा दिया गया और एक एन आर आई प्रशंसक ने दो करोड़ में उनका सूट खरीद लिया।
सूट बिक गया मगर मंगल, किशोरी, चमेली सब बहुत दुखी थे, कि अपने को कष्ट देकर गुलाबसिंह ने ऐसा क्यूँ किया? तो गुलाबसिंह बताने लगे कि अब वह इस पैसे का सदुपयोग करेंगे, तो उन्हे आत्मिक सुख मिलेगा। तभी मंगल से सज्जनसिंह पूछ बैठे कि सारा माजरा क्या था? मंगल ने बताया कि कैसे योजना बनाई। गुलाबसिंह भलीभाँति जानते थे की विरोधियों को उनका कोई काम पसंद नहीं है, मौके की तलाश में रहते हैं, कब मौका मिले और गुलाबसिंह की गर्दन दबोच लें ।
गुलाबसिंह ने अपने कपड़ा व्यापारी मित्र गनपत राय से एक सूट के लिए कहा और बोले कि वह धीरे धीरे पैसा दे देंगे। चूंकि गनपत राय गुलाबसिंह को बहुत मान देते थे और गुलाबसिंह ने पहली बार कुछ कहा था तो बोले की सूट तो मैं बनवा दूंगा लेकिन पैसा एक न लूँगा। बस तुम्हारी मित्रता ही मेरे लिए सब कुछ है। बस, फिर जब गुलाबसिंह सूट पहन कर निकले, तभी मंगल ने जाकर विरोधी खेमे तक ये खबर पहुंचा दी की गुलाबसिंह लाखों का सूट पहने घूम रहे हैं, अपनी शान दिखाने के लिए! उन्हें गाँव बालों की चिन्ता नहीं है। बस तिल का ताड़ बनने में क्या देर लगती है बात आग की तरह फैली। लेकिन इतना भान गुलाब सिंह को भी न था की उन्हें सूट के इतने अच्छे पैसे मिलेंगे।
तब तक मंगल ने एक गुजिया गुलाबसिंह को खिलाते हुए कहा बोलों भाइयों-लखटकिया सूट की जय!!!! लखटकिया सूट की जय!!!!

One thought on “लखटकिया सूट

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर कहानी !

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