उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 49)
44. अल्प खाँ का हिसाब
शाही हरम, शाही दरबार इस समय कुचक्रों का अड्डा बन चुका है। मलिक काफूर के स्वार्थ और देवलदेवी व हसन के प्रतिशोध की आग से अलाउद्दीन का वंश धू-धू करके जल रहा है। देवलदेवी अपने वंश, अपने धर्म, अपने शील और अपने राज्य का नाश करने वाले हर व्यक्ति से प्रतिशोध ले रही थी और उनके इस धार्मिक अनुष्ठान में उनका सहायक था हसन।
हसन के बलिष्ठ कंधों पर सर रखकर देवलदेवी बोली ”आर्यपुत्र, अल्प खाँ दिल्ली में है, आपको तो ज्ञात है कि कुमार भीम की हत्या करके इसी नराधम ने हमें शाही हरम में भेजा था।“
हसन देवलदेवी की केशराशि को अपने अधरों से छूकर बोला, ”ठीक है देवी, आज ही उस पिशाच का अंत करके हम आपके बलात् अपहरण का ठीक-ठीक हिसाब करेंगे।“
देवलदेवी ने आँखें उठाकर हसन की आँखों में झाँका तो पाया ”वहाँ उनके लिए सम्मान का सागर हिलोरें मार रहा था।
पैर के एक भरपूर वार से अल्प खाँ उछलकर दूर जा गिरा। संभलकर उसने उठकर देखा तो सामने हसन खड़ा था, साथ में चार-पाँच उसी के गाँव धर्म के सैनिक। म्यान से तलवार निकालकर संभलता हुआ अल्प खाँ बोला, ”अरे नीच हसन, तूने यह क्या किया। क्या तू जानता नहीं हम गुजरात के सूबेदार अल्प खाँ हैं।“
”हाँ, जानता हूँ, तू ही है गुजरात के विध्वंस का एक जिम्मेदार, राजकुमारी देवलदेवी का पतन का कारण। आज उन्हीं का हिसाब करने का वक्त है।“
”ओह! बड़ा दर्द है तुझे गुजरात और देवलदेवी का। क्या संबंध है तेरा उनसे?“
”संबंध, सुन अल्प खाँ ! गुजरात मेरी जन्मभूमि है और देवलदेवी मेरे लिए देवी है। उनके अपमान का प्रतिशोध हसन आज तुझसे लेगा।” हसन को बात करते देख, अल्प खाँ उस पर तलवार का वार करता है, जिसे हसन पैंतरा बदलकर बचा लेता है।
अल्प खाँ बोला, ”ठहर अज्ञातकुलशील, एहसान फरामोश मेरी तलवार का वार देख।“ हसन ने अल्प खाँ की बात सुनकर पलटकर वार किया। दोनों हिंसक युद्ध में रत हो गए। दोनों ही योद्धा थे, किंतु हसन की फुर्ती अल्प खाँ पर भारी पड़ी। अल्प खाँ का हृदय हसन की तलवार से चाक हो गया और वह तड़पकर ढेर हो गया।
उसके सीने पर पैर रखकर हसन ने अपनी तलवार उसके सीने से खींची और विजयी मुस्कान लिए वहाँ से निकल आया।
देवल देवी ने अपने और अपने देश-धर्म के साथ हुए बलात्कार का जो प्रतिशोध लिया, वह अभिनन्दन के योग्य है. काश जोधाबाई जैसी कुछ अन्य नारियों में ऐसी दूरदर्शिता होती, तो देश का इतिहास ही कुछ और होता.