तुम्हारी यादें
कल रात
गीली हो गयीं थीं,
तुम्हारी यादें
आँख से गिरते पानी से,
सुबह अलगनी पर
सुखाने डालीं थी,
भाप बनके उड़ने लगीं
तुम्हारी यादों की गंध
मेरे आईने को धुन्धुलाती,
आईने के अक्स पर
मौजूद है तुम्हारी पहचान,
जो उग आती हैं माथे पर,
मेरी बिंदी की तरह
जैसे अमावस को छोटा नन्हा चाँद।
_______प्रीति दक्ष
इस प्रशंसनीय रचना के लिए धन्यवाद।
shukriya man mohan ji 🙂
बहुत बढिया। थोडे में ही बहुत कुछ कहा है आपने।
bahot shukriya Rajiv upadhyaay ji.
shukriya raajiv upadhhayay ji
वाह वाह !
dhanywaad Vijay ji
shukriya vijay ji