सेमीफाइनल के अर्थ
आज भारत का सेमीफाइनल हारना कुछ ऐसी ही अनुभूति पैदा कर रहा है
जैसी, इम्तहान में कोई पर्चा खराब हो जाने पर होती है,
जैसी, किसी नौकरी के लिये दिये हुए साक्षात्कार में न चुने जाने पर होती है,
जैसी, बेटी की शादी के लिये आये हुए रिश्ते के कट जाने पर होती है,
जैसी, मार्च के टार्गेट पूरा न कर पाने पर होती है, अर्थात,
जैसी, हाथ में आयी हुई चिड़िया के उड़ जाने पर होती है।
और ये एहसास, यकीन करिये, रात को
ठीक से सोने नहीं देगा,
खाना खाने नहीं देगा
घर से बाहर जाने नहीं देगा
कोई खुशी मनाने नहीं देगा
हाय, ये कैसा एहसास है जो
चैन से जीने नहीं देगा।
पर कहीं इसका भी यकीन है कि
हकीम-ए-वक्त, जो हर घाव भर देता है, इस चोट पर भी नज़र करेगा
अपने नायाब मरहम से इस घाव को भी भरेगा।
एवम्अस्तु ।
अच्छा व्यंग्य ! खेल को अधिक महत्व देने पर यही होता है।