उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 51)
46. अंतिम परियोजना
हसन, जिसे सुल्तान मुबारक शाह खिलजी ने खुशरव शाह का खिताब अता किया था, उसके वक्ष से लिपटी देवलदेवी बोली, ”देव, हमें बहुत भय लग रहा है।“
”कैसा भय प्रिय? अब हम लक्ष्य प्राप्ति के अत्यंत निकट हैं।“ थोड़ा रुककर फिर तनिक हँसते हुए खुशरव शाह बोला, ”अब किस बात का भय, अब तो ‘देवी’ दिल्ली की होने वाली सुल्ताना हैं, सुल्तान मुबारक शाह की खास बेगम।“
देवलदेवी खुशरव के वक्ष पर हल्का सा मुष्टि का प्रहार करके बोली, ”परिहास न करें देव, आपको भली-भांति ज्ञात है हमें ऐसे परिहास पसंद नहीं।“
अपने जलते अधरों से खुशरव शाह देवलदेवी के वाम कपोल का चुंबन लेते हुए बोले, ”इसमें परिहास कैसा देवी, हमने तो सत्य ही कहा है।“
”छोड़िए देव, क्या आपका दक्षिण जाना अनिवार्य है। वहाँ आप स्वधर्मियों का रक्त ही बहाएँगे, यह कैसी योजना?“
”धैर्य रखें देवी, मैं दक्षिण से शीघ्र लौटकर आऊँगा और वही अवसर होगा दिल्ली के तख्त को सिंहासन में परिवर्तित करने का। मेरा भाई हिमासुद्दीन इस काल में दिल्ली में स्वजातियों और स्वधर्मियों के सेना संगठित करेगा और आप यहाँ रनिवास से सुल्तान की गतिविधियों की सूचना हमें देंगी और उसके हृदय में मेरे लिए विश्वास पक्का करेंगी।“
”किंतु देव पागल सुल्तान भी तो आपके साथ दक्षिण जा रहा है।“
”हाँ प्रिये, पर मैं उसे शीघ्र ही वहाँ से दिल्ली वापस भेज दूँगा और मैं स्वयं दक्खिन के हिंदू राज्यों से गुप्त संधियाँ करूँगा दिल्ली सल्तनत के समूल विनाश हेतु।“
”और निकम्मे खिज्र खाँ, शादी खाँ और अबू बक्र क्या यूँ ही जीवित रहेंगे। जब तक ये जीवित हैं देव, मेरे हृदय पर नाग लोटते रहेंगे। वह दुष्ट खिज्र खाँ चाटुकार अमीर खुसरो को धन देकर मेरी और खुद की झूठी प्रेमकहानी लिखवा रहा है। उसे पढ़कर इतिहास मुझे धिक्कारेगा, जबकि अंतरिक्ष सत्यता का साक्षी है देव।“
”जब मैं दक्षिण में रहूँगा तो षड्यंत्र से तीनों जीवित शहजादों का वध करवा दूँगा। आप निश्चिंत रहें देवी और रही बात आपकी और खिज्र खाँ की झूठी कहानी कलमबद्ध होने की तो कभी न कभी इतिहास का कोई सत्य का अन्वेषण अवश्य कर लेगा और उस समय आप भारतीय जनमानस में एक देवी की समान पूज्या हो जाओगी।“
”देव, क्या इतिहास का कोई सच्चा अन्वेषी भविष्य में जन्म लेगा, क्या हमारे स्वधर्म की स्थापना हेतु किए गए कार्यों का कोई मूल्यांकन करेगा?“
”अवश्य देवी!“ और फिर इतना कहकर धर्मदेव ने देवलदेवी को अंकपाश में भींच लिया और देवलदेवी ने भी अपनी देह को उनके आलिंगन में ढीला छोड़ दिया।
बहुत रोचक कहानी !