कन्या !!!!
कन्या कोई वस्तु नहीं जो
दान मे दी जाए
घर घर का मान है
अपमान न की जाए
शील है सौन्दर्य है
वैदिक ऋचा है वो
देवता वन्दन करते
स्वयं वन्दना है वो
शक्ति है संघर्ष है
लक्ष्मी की प्रतिमा है वो
बुद्धि प्रबल करती
स्वयं शारदा है वो
सॄष्टि है श्रॄंगार है
धीर धरा है वो
चेतन जगत की
स्वयं चेतना है वो
तुम क्या छलोगे उसे
स्वयं छलना है वो
तुम क्या दोगे उसे
स्वयं दाता है वो
मत रोको प्रवाह को
बहने दो सरिता है वो
तारिणी जगत की
स्वयं गंगा है वो
सूर्य की किरण है
धूप की छटा है वो
चाँदनी निशा की और
शीतल हवा है वो
बहुत अच्छी कविता है .