आत्मकथा

आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 27)

यहाँ पर यह बता दूँ कि मेरे तइया ससुर श्री सत्य नारायण जी गोयल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अत्यन्त प्रमुख कार्यकर्ताओं में से एक हैं। वे संस्कार भारती के अखिल भारतीय महामंत्री भी रह चुके हैं। वे बहुत अच्छे फोटोग्राफर और चित्रकार हैं। पहले वे ‘अमर उजाला’ दैनिक के लिए फोटोग्राफी करते थे, फिर स्वतंत्र रूप से करने लगे। उनकी कलाकुंज स्टूडियो नाम से बाग मुजफ्फर खाँ चौराहे पर फोटो की मशहूर दुकान है। बाद में कलर फोटो का जमाना आ जाने पर उन्होंने कलर लैब लगा ली हैं, जो स्पीड कलर लैब के नाम से सुविख्यात हैं। इस समय उनकी 5 कलर लैब हैं- तीन आगरा में और एक-एक मथुरा तथा फिरोजाबाद में। अपनी भतीजी के बारे में उन्होंने ही हमारे मामाजी को बताया था और उनकी संजय प्लेस वाली स्पीड कलर लैब में ही हमारी सगाई का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था। वे मेरी बहुत इज्जत करते हैं और मैं भी उन्हें पूरा सम्मान देता हूँ। उनके पास लाखों फोटुओं का पुस्तकालय जैसा संग्रह है। ऐसा संग्रह दुनिया में और किसी के पास शायद ही हो। उनके खींचे हुए दुर्लभ फोटो अभी भी संघ की पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं।

श्रीमतीजी के पूरे परिवार का परिचय देना उचित रहेगा। हमारे ससुराल पक्ष का खानदान आगरा के प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है। इनका पुश्तैनी मकान राजामंडी में रेल के फाटक के निकट है। हमारे ससुरजी श्री मोतीलाल जी गोयल तीन भाई थे और उनके चार चचेरे भाई भी थे। इनमें से एक चचेरे भाई श्री स्वरूप चंद जी गोयल बम्बई में स्थापित हैं और अग्रवाल समाज तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय स्तर के कार्यकर्ता हैं। उनके एक भाई के परिवार की आगरा में कई टूरिस्ट बसें चलती हैं तथा एक भाई बिजली के सामान के विक्रेता और व्यापारी हैं। चौथे भाई के यहाँ भी कपड़े का व्यापार होता है और वे भी बम्बई में स्थापित हैं।

मेरे ससुर जी के सबसे बड़े भाई स्व. श्री राज नारायण गोयल के 6 पुत्र हैं और सभी विभिन्न व्यवसायों में लगे हैं। उनके दो-तीन पुत्रों के प्लास्टिक के ब्रश बनाने के कारखाने हैं। उनसे छोटे श्री सत्य नारायण जी गोयल का परिचय ऊपर दे चुका हूँ। इनके चार पुत्र हैं जो सभी विभिन्न कलर लैबों को सँभालते हैं। इनके सबसे छोटे पुत्र विवेक को सबसे बड़े पुत्र श्री विजय गोयल ने गोद ले रखा है।

मेरे ससुर जी श्री मोती लाल जी गोयल सभी भाइयों में सबसे छोटे हैं। वे प्रारम्भ से ही सीधे-साधे हैं। उनको दिखाई कम देता है और सुनाई और भी कम देता है। इस कारण कोई भी उनको मंदबुद्धि समझने की गलती कर सकता है। उनकी माली हालत शुरू से ही अच्छी नहीं है, जबकि उनके खानदान के अन्य सभी लोग खूब सम्पन्न हैं।

(पादटीप : मेरे ससुर जी श्री मोती लाल गोयल तथा उनके बड़े भाई श्री सत्य नारायण गोयल का तीन वर्ष पूर्व देहांत हो चुका है.)

मेरी श्रीमतीजी चार बहनें और एक भाई हैं। सबसे बड़ी बहन श्रीमती सुमन मथुरा में ब्याही हैं और आजकल सूरत में रहती हैं। उनके पति (मेरे साढ़ू) श्री हरिओम जी अग्रवाल साड़ियों के व्यापारी हैं। उन्होंने सूरत में अपना फ्लैट भी खरीद लिया है। दूसरी बहिन श्रीमती रेणु आगरा में ही कमला नगर में श्री सुनील कुमार अग्रवाल से विवाहित हैं। उनकी जनरेटर पार्ट बनाने की फैक्टरी है। उनकी माली हालत बस ठीक-ठाक है और उन्होंने अपना मकान बसन्त विहार में बना लिया है।

(पादटीप : श्रीमती रेणु जी एक दुर्घटना के बाद कोमा में चली गयी थीं.  दो वर्ष से अधिक इस स्थिति में रहने के बाद इसी वर्ष 9 मार्च को उनका स्वर्गवास हो गया है.)

उनसे छोटी श्रीमती वीनू हैं, जो मेरी अर्धांगिनी हैं, वैसे अब उन्हें डबलांगिनी कहना ज्यादा सही होगा। उनसे छोटे उनके एक मात्र सगे भाई श्री आलोक कुमार गोयल हैं, जो आगरा में ही कपड़े की थोक की दुकान साझेदारी में करते हैं और अपने खर्च लायक कमा लेते हैं। सबसे छोटी बहिन श्रीमती राधा (गुड़िया) हैं, जिनका जिक्र ऊपर कर चुका हूँ। वे भी विवाहित हैं और उनके पति (मेरे छोटे साढ़ू) श्री विजय कुमार जिन्दल भी कपड़े के कमीशन एजेंट हैं और थोड़ा बहुत शेयरों का काम भी कर लेते हैं। उन्होंने भी अपना मकान बसन्त विहार, कमला नगर में बना लिया है।

आजकल तो सभी की माली हालत ठीक है, परन्तु जब मेरा विवाह हुआ था, तब मेरे ससुर जी की माली हालत बहुत खराब थी। उनकी सबसे बड़ी पुत्री सुमन जी का विवाह परिवारियों के सहयोग से हो गया था। उसका कन्यादान उनकी बड़ी भाभी ने किया था, जिनके कोई पुत्री नहीं है। दूसरी पुत्री रेणु जी का विवाह भी इसी प्रकार ठीक-ठाक हो गया था। अन्हें आशा थी कि इसी प्रकार उनकी शेष दोनों पुत्रियों की शादी भी हो जाएगी। लेकिन दुर्भाग्य से उनकी पत्नी अर्थात् मेरी सास श्रीमती मुन्नी देवी के पैर में कोई खतरनाक घाव हो गया। मेरी सगाई के समय वे ठीक थीं, लेकिन विवाह से कुछ दिन पूर्व ही हालत बहुत खराब हो गयी। विवाह की तारीख तय हो चुकी थी, लग्न भी हो चुकी थी, इसलिए विवाह टल नहीं सकता था।

मम्मीजी का इलाज आगरा में नहीं हो पाया, तो उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में ले जाकर भर्ती कराया गया। हमारे विवाह के दिन भी उनका वहीं इलाज चल रहा था। वीनू जी का कन्यादान उनकी दूसरी ताई (कलाकुंज स्टूडियो वाली ताईजी) ने किया था। वीनू जी ने मुझे बाद में बताया था कि लगातार तीसरी बेटी होने के कारण उनकी मम्मी का ज्यादातर गुस्सा उनके ऊपर ही उतरता था। एक दिन क्रोध में उन्होंने कह दिया था कि ‘तू मुझे बहुत मारती है, मेरा कन्यादान मत करना।’। ईश्वर की लीला कुछ ऐसी हुई कि उनकी मम्मी उनका कन्यादान नहीं कर पायीं।

उनके विवाह के लिए जो पैसा इधर-उधर से इकट्ठा हुआ था, उसमें से काफी मम्मीजी के इलाज में खर्च हो गया था। इसलिए बहुत सादगी से विवाह हुआ। बस बारात की खातिरदारी ठीक हो गयी। किसी लेन-देन का कोई प्रश्न ही नहीं था। मैंने भी कोई उम्मीद नहीं की थी। मैंने अपने वेतन से करीब 15-20 हजार रुपये बचा लिये थे, जो मेरे विवाह में काम आ गये। बैंड-बाजों के बिना सादगी से विवाह हुआ। हालांकि मेरे सभी रिश्तेदार इस पर आश्चर्य कर रहे थे कि विवाह में कुछ नहीं मिला है, परन्तु सभी खुश थे कि दुल्हन अच्छी आ गयी है।

(जारी…)

 

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

5 thoughts on “आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 27)

  • विजय भाई , आप ने सारे परिवार को बखूबी से वर्णन किया , पड़ कर अच्छा लगा . अपनी श्री मति को दबलंगिनी लिखा , कुछ समझ नहीं आई , हिंदी कुछ कमज़ोर है , हा हा

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद भाई साहब! वह एक मज़ाक़ था। मेरे कहने का मतलब यह है कि पहले वे पतली थीं यानी आधी और अब मोटी हो गयी हैं यानी डबल या दूनी। हा हा हा …

      • विजय भाई , कोई बात नहीं इधर मेरी भी सिन्गल्धान्ग्नी है और मैं दबब्लंग हूँ .

  • Man Mohan Kumar Arya

    आज की किश्त में आपके ससुराल पक्ष का वर्णन पढ़ा. आपने बहुत रोचक बना कर प्रस्तुत किया है। पढ़कर अच्छा लगा। आप भाग्यशाली है, इस कारण की सभी सम्बन्धी शिक्षित, स्वावलम्बी व संपन्न हैं। आज की किश्त के लिए हार्दिक धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार, मान्यवर !

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