ग़ज़ल
गर्मी-ए-इश्क भी क्या ख़ाक असर लाएगी,
बर्फ पिघलेगी तो चट्टान नज़र आएगी।
हम तो दिल देके सजाते थे हंसी ख्वाब कई,
किसको मालूम था रुसवाई कहर ढाएगी।
शौक पीने का अगर है, तो निगाहों से पी,
मय तो मयखाने की दो गज़ पे उतर जाएगी।
इस ज़माने से फ़क़त हम ही हैं नाराज नहीं,
वक्त आएगा, नयी नस्ल भी शर्माएगी।
उससे पूछूँगा बज़ुज़ इश्क है क्या मेरी ख़ता,
ज़िंदगी ‘होश’ अगर फिर मुझे तरसाएगी।
गर्मी-ए-इश्क भी क्या ख़ाक असर लाएगी,
बर्फ पिघलेगी तो चट्टान नज़र आएगी।
achha matla
बढ़िया ग़ज़ल.