किसी के रोकने से हम कहाँ रुकने वाले हैं …
कुछ अधूरे ख्वाब ,
आजकल मुँह चिढ़ाने लगे हैं !
हार मानने वाले हैं कहाँ,
नित नये हौंसले हम जगाने लगे हैं !!
राहों के पत्थर ,
रोकने की कोशिश रोज ही करते हैं !
डरकर मुसीबतों से भला ,
हम भी पथ अपना कहाँ बदलने वाले हैं !!
मुस्कराती हुई मंजिल ,
अपनी बाँहें पसार बुला रही है हमको !
दौड़कर दुगनी गति से ,
अपनी मंजिल को हम गले लगाने वाले हैं !!
ख्वाब सारे पूरे कर ,
हम भी एक नया इतिहास रचाने वाले हैं !!
अपने मुँह मियामिट्ठू बनने वालों को ,
हम अब सच्चाई का आईना दिखाने वाले हैं !!
प्रवीन मलिक ^_^
वाह वाह !