निश्छल प्रेम कथा कह रही हो !!
तुमसे जब होता है,
नयनोन्मीलन।
मुझे ऐसा एहसास होता है।
तुम्हारी अधरों के,
मधुर कंगारो ने।
तुम्हारी ध्वनि की,
गुंजारो ने ।
तुम्हारी मधुसरिता सी,
हँसीं तरल।
रजनीगंधा की तरह,
कली खिली हो।
राग अनंत लिये,
अपने अधरों में।
हँसीनी सी सुन्दर,
पलको को उठाये हुअे।
मौन की भाषा में।
विस्फारित नयनो से,
निश्छल प्रेम कथा कह रही हो
——-रमेश कुमार सिंह
बहुत खूब !
आभार!!