कुछ मुक्तक
भटके हुओं को राह दिखाती हैं पुस्तकें
अँधेरे मन में दीप जलाती हैं पुस्तकें
मन में अगर लगन हो तो कुछ भी कठिन नहीं
नव चेतना नव जागरण लाती हैं पुस्तकें
फूलों से लद गई है हर डालीगुलाब की
महका रही चमन को हर डाली गुलाब की
ऐ काश कोई देखता उसको भी प्यार से
जिन काँटों ने की रोज रखवाली गुलाब की
गलिन -गलिन मैं टेरत हारी दर्शन दे दो राम मुझे ,
विनती सुन लो हे पुरुषोत्तम मत तरसाओ राम मुझे,
राम राम की रट जो लागी अपनी सुध – बुध भूल गई
चरण चिन्ह चरणामृत दोनों मिले शुचित अभिराम मुझे ।
जल की हर एक बूँदमें ऊर्जा का भंडार
बूँद बूँद जल की मिले तब बनती जल-धार
जल बिन जड़ सारा जगत ऊसर बंजर खेत
जल वृष्टि से जगत में हो अमृत संचार
मैं अकिंचन अनवरत सुन रही क्रन्दन अवयवों का
कुछ कहे कुछ अनकहे बेबाक शब्दों के शवों का
कौन हो? पहचान क्या है? ये बताओ तो हमें
शून्य से शून्य तक का सफर अपने अनुभवों का
— लता यादव
बहुत अच्छे मुक्तक !