कविता

नाज़ है मुझे

 

कब चाहा है मैंने के तुझे सिर्फ अपना बनाऊ

मैं सिर्फ तेरी हूं ….इस बात पर नाज़ है मुझे

 

कब चाहा है मैंने के तुझे पास अपने बुलाऊ

मैं सिर्फ तेरे पास हूं इस बात पर नाज़ है मुझे

 

कब चाहा है मैंने के तेरे सपनो में रोज़ मैं आऊ

मैं सिर्फ तेरे सपने देखूं इस बात पर नाज़ है मुझे

 

कब चाहा है मैंने के तुझे दामन से अपने बाँध लूं

मैं सिर्फ तेरे पहलू में हूं इस बात पर नाज़ है मुझे

 

कब चाहा है मैंने के तुझ संग हँसी के पल बिताऊ

मैं सिर्फ तेरे दर्द बाँटू इस बात पर नाज़ है मुझे

 

कब चाहा मैंने के तेरे अधरों पर हसी बन बिखर जाऊ

मैं सिर्फ तेरीआँखों का पानी नहीं इस बात पर नाज़ है मुझे ।

प्रिया

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - priyavachhani26@gmail.com

One thought on “नाज़ है मुझे

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार कविता !

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