संस्मरण

मेरी कहानी-15

आज के एपिसोड में मैंने लिखना तो कुछ और था लेकिन आज सुबह कुछ दोस्त लड़के की शादी का कार्ड देने आये तो बातें चल निकली आज के बच्चों की। बातें यह थी कि एक लड़की ने मनमर्ज़ी के लड़के से शादी तय की, उस शादी पे ५० हज़ार पाउंड खर्च हो गिया लेकिन ६ महीने बाद तलाक हो गिया क्योंकि लड़की ने कहा कि वोह लड़का बहुत स्लो था, फिर एक ने सुनाई कि वैस्ट ब्रॉमविच में एक शादी हुई, शादी के बाद जब हाल में केक काटने लगे तो लड़के ने शैम्पेन की बोतल खोली , तालिआं बजने लगीं। फिर इस ख़ुशी में लड़के की माँ  ने वोह बोतल उठा कर बोतल को जोर से हिलाया तो कुछ शैम्पेन की झाग लड़की की साड़ी पर पड़  गई , लड़की गुस्से में आ गई और होने वाली सास से आर्गुमेंट करने लगी। लोगों ने बहुत समझाया लेकिन लड़की बोले ही जा रही थी। लड़का भी गुस्से में आ गिया और स्टेज पर चढ़ कर बोला ,” ladies and gentle men , please enjoy your meal but the marriage is over “. बस फिर किस ने खाना था।

        मैंने यह सब बातें सुनी और सोचता रहा कि आज हम कहाँ भूल रहे हैं , छोटी छोटी बातों पे तलाक , कुछ तो हनीमून पर गए ही लड़ कर आ जाते हैं और तलाक हो जाता है, यह हो क्या रहा है ?. सोचते  सोचते मेरे दिमाग मेरे रतन सिंह ताऊ के बेटे यानी मेरे बड़े भाई गुरचरण सिंह  की शादी थी, उस वक्त मैं पांच वर्ष का हूँगा। मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि मेरे ताऊ और हमारे घर वाले कभी लड़ पड़ते थे कभी बोल पड़ते थे , मुझे इस बात की कभी समझ नहीं आई कि क्यों ? पिताजी तो अफ्रीका थे इस लिए मेरे दादा जी ही सब काम संभाले हुए थे। सारा पकवान ताऊ जी के आँगन में ही बन रहा था क्योंकि उसका आँगन काफी बड़ा था। इन दिनों पकवान बहुत सादा होते थे लेकिन बहुत ज़्यादा बनाते थे और सारे रिश्तेदारों को भी शादी के बाद बहुत देते थे। पंजाब में गोगले पकौड़ों का रिवाज है और अभी भी उसी तरह बरकरार है। पहले तो लम्बे लम्बे पकौड़े बनाये गए जो खाते भी हैं और आलू वडिओं की सब्जी में भी डालते हैं , यह कोई आधा कुइन्तल तो होंगे ही , फिर गोगले भी इतने ही होंगे (यह आटे से बनते हैं). इस के बाद इतनी ही मीठी  सीरनी।
            दो हफ्ते शादी से  पहले ही रौनक होने लगी। रोज़ रात को मोहल्ले की औरतें आतीं और खूब गीत गातीं। यह गीत शादी के ही होते थे और इन गीतों का अंदाज़ और तर्ज़ सब दूसरे गीतों से हट कर होता था। क्योंकि यह ख़ुशी का वक्त था तो कुछ औरतें ताऊ जी को सुना कर  मज़ाक के गाने गातीं, ताऊ जी ने शराब का घूँट तो लिया ही होता था और झूमते हुए खुश हो जाते। कुछ चर्मकार और मिहतर लोग भी आये होते जो अक्सर घर के बाहिर ही बैठे होते थे और लगातार बधाईआं देते रहते। यह सिलसिला बहुत रात तक चलता रहता और मेरी माँ सब औरतों को गोगले  पकौड़े और सीरनी  मिक्स कर के देती। बाहिर बैठे उन गरीबों को भी मिलती , सब असीसें दुआएं देते हुए अपने अपने घर को रवाना हो जाते।
        यह सर्दियों के दिन थे और बरात को भबिआणे गाँव को जाना था जो था तो पांच मील ही लेकिन रास्ते कच्चे थे और बहुत खराब। दुपैहर को ही बाजे वाले आ गए और चहल पहल हो गई। आप हैरान होंगे कि उन दिनों लड़की वाले तीन दिन बरात को रखते थे, बरात के सोने और रहने का प्रबंध एक बरात घर में होता था। हर गाँव में और शहरों में भी बरात घर होते थे। इसलिए सब बाराती अपने कपडे वाले लोहे के सूट केस जिस को ट्रंक बोलते थे  ले जाते थे और साथ ही अपने अपने बिस्तरे। भैया की शादी में भी दो बड़े छकड़े जिस पर सामान और बज़ुर्ग बैठे थे और दो छोटी बैल गाड़ीआं जिस पर युवा लड़के बैठे थे। बाजे वाले खूब बजा रहे थे और इस्त्रीआं गा रही थीं। बरात को कुछ देर हो गई थी। सर्दिओं के दिन छोटे होते हैं और करते करते फिर भी देर हो गई। मुझे एक मेरी बुआ जी के लड़के ने अपने पास बिठाया हुआ था। जब बरात चल पड़ी तो कुछ मील दूर जा कर ही अँधेरा होने लगा। पहले तो गाडिओं को सभी बहुत तेज़ दौड़ा रहे थे और यह मदर इंडिया फिल्म जैसा ही सीन था जिस में नर्गिस की शादी के दौरान बैल गाड़ियां तेज़ दौड़ रही थीं और उन के गले में बंधे घुंगरुओं की आवाज़ का एक अजीब नज़ारा था। जब यह शादी का काफ्ला गाँव से एक मील दूर रह गया तो रास्ता भूल गए। सर्दी बहुत थी सब लोग ठैहर गए और कहीं से लकड़ीआं ला  कर आग जला  दी और इर्द गिर्द खड़े हो कर ताप्ने लगे। फिर एक आदमी एक बृक्ष पर चढ़ा और ऊंची आवाज़ में बोला , ” ओए वाजे वालिओ ओ ओ ओ “. कुछ देर बाद बाजे वालिओं ने ट्रम्पिट को बजाया और तू तू की आवाज़ आई। सभी बाराती खुश हो गए कि वाजे वाले तो पहले ही पुहंचे हुए थे। फिर उस ओर चलने लगे।
           जब गाँव पुहंचे तो लड़की वालों  की तरफ से सभी आये हुए थे और एक आदमी अपने सर पर गैस लैन्टर्न लिए खड़ा था जिस से चारों तरफ रौशनी थी। रस्में हो गईं और हमें खाने का न्योता भी दे दिया गया। खूब बाजे गाजे के साथ खाने के स्थान पर पौहंच गए। कोई कुर्सियां मेज़ नहीं थी , सिर्फ ज़मीन पर लम्बी लम्बी चादरें विछाई हुई थी। सभी लाइनों में उन चादरों पर बैठ गए। पहले तीन आदमी आए , एक के हाथ में बड़ा सा पानी का  लोटा था , एक के हाथ में  खाली बर्तन  था और एक के  हाथ में बड़ा सा तौलीआ था। हर एक बाराती के हाथ धुलाए  गए , इस के बाद हर एक के आगे थालिआं और ग्लास रखे गए और साथ में चमचे भी। इस के बाद दो शख्स चावल थालिओं में डालते गए। फिर एक शख्स चावलों के ऊपर खंड डालने लगा और पीछे एक आदमी चावलों के ऊपर घी डालने लगा। सभी घी खंड से चावल मिक्स करके खाने लगे। जब चावल ख़त्म हो गए तो दाल सब्ज़ी और बड़ी बड़ी रोटीआं देने लगे। उधर इर्द गिर्द औरतें गा रही थी। खाना खाने  के बाद फिर हाथ धुलाए गए और बाजे वाले वाजा बजाने लगे और सभी बाराती बरात घर आ गए।
       सभी ने अपने अपने बिस्तरे लगाए और बातें करने लगे। सुबह को सभी खेतों में जंगल पानी के लिए चले गए और उन के आने तक एक बड़ा सा ड्रम चाए का और बहुत सी मीठी सीरनी ले कर कुछ लोग आ गए थे। बड़े बड़े पीतल के ग्लासों में भर कर चाय दी गई और साथ बहुत सी सीरनी। फिर बारह वजे विवाह की रस्में शुरू हुई और बाद में खाना था।  यह खाना लड्डू जलेबिओं, कुछ और साधारण मठाई  के साथ और सादा दाल सब्ज़िओं के साथ था। इस के बाद जब बरात घर आए तो नाच मण्डली वालों का प्रोग्राम था। यह बहुत मज़ेदार प्रोग्राम था , दूर दूर गाँवों से लोग यह देखने के लिए आये हुए। नाचने वाले लड़के जो मेक आप करके खूबसूरत लड़किआं बने हुए थे खूब नाच रहे थे लोग उन को रूपए दे रहे थे। इस के बाद सभी बाराती कोई किधर कोई किधर गाँव में घूम रहा था। शाम को फिर खाने के लिए लड़की वालों के घर चल पड़े और खाना खा कर फिर बरात घर में आ गए। लोगों ने खूब बातें और जोक्स किये। सुबह को फिर चाए और सीरनी। एक वजे रोटी और कुछ देर बाद विदाई होने की तिआरीआं होने लगी। मेरी भाबी को एक छोटी सी गाड़ी में एक बुड़िआ के साथ बिठा दिया गिया और गाड़ी के आगे मेरा भईआ और गड़वान बैठे थे। सभी ने तीन दिन मज़े किये थे और अब वापिस मुड़ते समय सभी घर पौहंचने के इंतज़ार में थे। घर आ कर सभी औरतें इंतज़ार में थीं और गा  रही थी। भावी जी को भीतर लाया गिया और मुझे साथ में बिठाया गिया।
        इस भाबी ने मुझे बहुत पियार दिया था  और मैं ने भी उस के लिए बहुत कॉम किया। भाबी और भैया का पियार बहुत था लेकिन भैया रोज़ी रोटी के लिए इलाहबाद काम करते थे और उन के वापिस आने तक मैं भाबी के घर सो जाय करता था , बाद में बच्चे होने शुरू हो गए और धीरे धीरे मैं भी अपने घर सोने लगा। भैया की दो बेटीआं ऑस्ट्रेलिआ में रहती हैं लेकिन खुद दोनों भगवान को पियारे हो गए हैं लेकिन जब जब भी उनकी याद आती है तो उस विवाह का सीन आँखों के सामने आ जाता है। कितना सादा लेकिन अच्छा  वक्त था वोह , तलाक कभी सुने ही नहीं थे। आज बच्चे खूब कमाते हैं , पैसे में खेलते हैं लेकिन मन की शान्ति बिलकुल खत्म हो गई है , तलाक बड़ रहे हैं और बच्चे बीच में पिस रहे हैं , बज़ुर्गों को दुःख उठाना पड़ रहा है ,आगे क्या होगा , बस भगवान ही जाने।
चलता। …

7 thoughts on “मेरी कहानी-15

  • मनजीत कौर

    भाई साहब ये किस्त भी लाजवाब है आप की कहानी बहुत ही दिलचस्पी से पड़ती हु एक बार पड़ना शुरू करती हु तो पड़ती ही चली जाती हु । बचपन में दादा जी दादी जी से मां से उनके जमाने की बाते सुना करते थे , आप की बातो में उनके दर्शन हो जाते है, अब वो इस दुनिया में नहीं है | मेरे माता जी भी बताया करते थे की तब बरात तीन दिन तक रुका करती थी| सुन कर बहुत आस्चर्य होता था । आज की कड़ी पड़ कर बहुत आनंद आ गया |

  • Man Mohan Kumar Arya

    आलेख आदि से अंत तक पढ़ा। मुझे भी बचपन में अपने मौसेरे भाई व ममेरे भाई के विवाह की स्मृतियाँ ताजा हो गईं. जैसा आपने वर्णन किया, इसी प्रकार ३ दिन का कार्यक्रम था व विवाह में खूब आनंद आया था। पहले विवाह में आडम्बर नहीं था। अब आडम्बर और दिखावा कुछ ज्यादा हो गया है। खाना ऐसा बनता है जिसे खाकर अच्छा खासा इंसान बीमार हो जाए। मुझे एक बात और याद है। उन दिनों जब लड़की की विदाई का समय होता था तो प्रायः लड़के को दहेज़ में एक निवार का पलंग और साइकल भी मिलती थी। विदाई से पहले सारा दहेज़ का सामान उस पलंग पर सजाया जाता था जिसे बाराती और लड़की के पक्ष के लोग कुछ घंटो तक देखते थे और आपस में उसके बारे में बातें करते थे। क्या दिन थे वह? आज का लेख पढ़कर आनंद आया। हार्दिक धन्यवाद।

    • मनमोहन भाई , वोह दिन बहुत अछे थे और गाँव के लोग भी लड़की वालों का साथ देते थे , दूध बगैरा तो मोल लेना ही नहीं पड़ता था . आप ने सही कहा कि नवार का पलंघ होता था और एक बहुत बड़ा लकड़ी का बौक्स जिस में घर के सोने वाले कपडे रखते थे , एक चरखा , हाथ वाले पंखे , लड़की की अपनी बनाई हुई चादरें जिन पर वेळ बूते बनाए होते थे और दरिआन . शादी के काफी देर बाद मुकलावा होता था , जब दूल्हा अपनी बीवी को लेने जाता था . बहुत सादगी थी लेकिन लड़की समझती थी कि अब उस का सुसराल ही पक्का घर होगा और यह होता भी ऐसा ही था . अब जो इतने तलाक बड रहे हैं , मुझे तो लगता है फीऊचार में लोगों को यह जानना मुश्किल हो जाएगा कि उन के बजुर्ग कौन थे और इस के लिए एजंसी बगैरा बन जाएंगी जो लोगों से पैसे लेकर उन के फैमिली ट्री ढूँढने में मदद करेंगी .

      • Man Mohan Kumar Arya

        आदरणीय महोदय, आपका एक एक शब्द सत्य व अनुभव से परिपूर्ण है। मेरी अधूरी बातों का आपने सही सही विस्तार दिया है। मैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ। आपने हमारे जीवन के स्वर्णिम दिन याद करा दिए। हार्दिक धन्यवाद।

  • विजय कुमार सिंघल

    भाई साहब, आज की कड़ी पढ़कर आनंद आया. हमने भी बचपन में अपने गाँव में तीन-तीन दिन तक रुकने वाली बारातें देखी थीं. बड़े लोग बताते थे कि पहले बरात 8-8 दिन तक भी रोकी जाती थी. अब तो एक रात भी नहीं. बस एक दावत के बाद भाग जाते हैं सब. केवल लड़के के घरवाले और कुछ खास रिश्तेदार भांवर (फेरे) डलवाने को रह जाते हैं. सुबह होते ही दुल्हन को लेकर वे भी सरक जाते हैं.

    • विजय भाई , चार दिन तो मैंने भी देखी है और उस आदमी की गाँव में बल्ले बल्ले हो गई थी यानी उस ने बरातिओं की बहुत आव भगत की थी . मेरे ताऊ नन्द सिंह के भतीजे की शादी भी इसी भभीआने गाँव में हुई थी और तब भी हम तीन दिन रहे थे , इसी तरह मेरे बड़े भाई जो अफ्रीका में रहते थे , इसी तरह हुई थी . बहुत मज़ा होता था . सही कहा आप ने , अज तो फेरों के वक्त घर के लोग ही रह जाते हैं और सब हौल में चले जाते हैं .

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